आरव एकटक सुहानी को देख रहा था— उसकी आँखों में उम्मीद, बेचैनी और डर तीनों एक साथ तैर रहे थे। 

"अब बहुत हो चुका…अब तुम मुझे सब कुछ बताओगी, वो भी सच-सच," आरव कि आवाज़ काँप रही थी…गुस्से से नहीं, बल्कि उस सच्चाई के डर से, जिसके लिए वो तैयार नहीं था। 

सुहानी की आँखों में साफ़ झलक रहा था कि वो कितनी हताश हो चुकी थी, मगर अब वो चुप रहने को तैयार नहीं थी। उसकी साँसें तेज़ थीं, मगर शब्दों में अडिगता थी।

सुहानी ने गहरी सांस ली और धीरे से पास आकर कहा —

“ठीक है आरव,” उसने धीमे स्वर में कहा, "आज मैं आपको वो सब कुछ बताऊंगी…वो सब कुछ जो आपके जीवन से जुड़ा है, आपके अतीत से, आपकी पहचान से, आपकी… असली माँ से... और आपके पिता से, जिन्हें मरा हुआ घोषित कर दिया गया था, बिलकुल मेरी माँ की तरह।" फिर सुहानी ने आरव को धीरे से सहारा देते हुए बैठने का इशारा किया। 

आरव चुपचाप सोफे पर बैठ गया, उसकी आंखें सुहानी के चेहरे पर टिकी थीं—जैसे वो हर शब्द में सच्चाई को टटोल रहा हो।

सुहानी ने अपनी बात शुरू की, आवाज़ में भारीपन था— “आरव, आपके पापा, शमशेर राठौर की 'मौत' सिर्फ एक झूठी कहानी थी... एक कहानी जो आपको बताई गई, ताकि एक बड़ा राज़ आपसे छुपाया जा सके।”

आरव का गला सूखने लगा, उसकी साँसे तेज़ होने लगी।

“आपकी माँ... पूर्वी, मेरी माँ की सबसे अच्छी दोस्त थीं। दोनों ने एक ही परिवार में प्यार पाया। मेरी माँ काजल, और आपके चाचा रणवीर... कॉलेज से एक-दूसरे को जानते थे, और आपकी माँ पूर्वी, आपके पापा शमशेर राठौर से एक पार्टी में मिल थीं, जिसे रणवीर अंकल ने organise किया था।”

“आपकी माँ और शमशेर अंकल का रिश्ता बहुत गहरा था। लेकिन उस घर में सब कुछ वैसा नहीं था जैसा दिखता था। दिग्विजय राठौर… उस परिवार का सबसे खतरनाक शख्स…”

आरव के कान उन सारी बातों को accept नहीं कर पा रहे थे। सुहानी ने एक पल को खुद को संभाला, और अपनी कहानी को आगे बढ़ाया—

“उनकी अपनी धर्मपत्नी से कोई संतान नहीं थी, और उन्हें डर था की उनकी legacy कभी आगे नहीं बढ़ेगी, तो वो डर गए। उनके एक नाजायज़ रिश्ते से उनकी एक नाजायज़ औलाद थी और वो उसे राठौर खानदान की प्रॉपर्टी का वारिस बनाना चाहते थे।”

आरव का चेहरा जैसे सख्त पड़ गया था। उसके भीतर हलचल थी, मगर वो कुछ बोले बिना सुहानी को सुनता रहा।

"शमशेर अंकल ने पूर्वी आंटी से शादी कर ली, और कुछ ही समय में घर जुड़वा बेटों का जन्म हुआ — जिनमें से एक तुम थे, आरव। मगर तुम्हें ये कभी नहीं बताया गया कि तुम्हारी माँ पूर्वी थीं, और तुम्हारा एक भाई भी था, जुड़वा भाई। तुम्हें यही बताया गया कि गौरवी तुम्हारी माँ है... लेकिन वो सिर्फ एक परछाई थी, एक धोखा, जिसे दिग्विजय राठौर द्वारा तुम्हारे जीवन पर थोप दिया गया।

और जब उन्हें पता चला कि वसीयत में उनके भाई के बेटे को वारिस बनाया गया है, तो उन्होंने एक साजिश रच डाली।"

आरव अब फुसफुसाकर बोलता है —“वसीयत…? किस बेटे को?”

“तुम्हें” सुहानी ने जवाब दिया।

"तुम हो शमशेर राठौर के इकलौते वारिस, आरव। तुम्हारे जुड़वा भाई को तुम्हारी माँ के साथ एक एक्सीडेंट में मार दिया गया और उसके पीछे भी दिग्विजय राठौर और गौरवी का हाथ था। वो तो तुम्हें भी रास्ते से हटा देना चाहते थे, मगर तुम बच गए। लेकिन इस सच को छुपाने के लिए भी दिग्विजय राठौर ने कई खेल खेले। पर तुम्हारे दादाजी और पापा—उन्हें सब कुछ पता चल गया था, मेरे पापा के ज़रिये और उसी के बाद तुम्हारे दादाजी ने वो वसीयत लिखी थी, ताकि तुम्हें बचाया जा सके।"

आरव का चेहरा सफेद पड़ गया। उसकी मुट्ठियां भींच गईं।

"शमशेर अंकल ने भी एक रास्ता चुना," सुहानी बोलती रही, “उन्होंने अपने जिंदा रहने की कीमत चुकाई—अपनी पहचान खोकर। उन्होंने खुद को सबकी नजरों से मिटा दिया… ताकि समय आने पर वो तुम्हारे लिए खड़े रहें।”

“तुम्हारे बचपन की सारी यादें धीरे-धीरे बदली गईं, तुम्हें एक झूठे अतीत के साथ बड़ा किया गया और सबसे बड़ा झूठ—ये कि तुम्हारे पापा मर चुके हैं।”

आरव अब काँप रहा था।

"तुम्हें ये बताया गया कि मेरे पापा ने तुम्हारे पापा को धोखा दिया था, और इसलिए उन्होंने आत्महत्या कर ली…क्योंकि वो समाज में खुद को ज़लील महसूस करते थे… फिर धीरे-धीरे तुम्हारे दिल में मेरे लिए नफरत भर दी गई, क्योंकि… उस वसीयत में मेरा नाम भी था आरव।” सुहानी ने बड़ी हिम्मत कर के आरव को ये बात बताई। 

“तुम्हारा? पर क्यों?” आरव ने अचम्भे में पूछा। 

“कई दिन इस पर विचार करने के बाद मुझे लगता है, ताकि कोई तुम्हें सच से वाकिफ करा सके। मैं उनके एक ट्रस्टेड एम्प्लोयी और काजल की बेटी थी। जो शायद उनके घर के राज़ को समझ सकती थी। मगर आरव मुझे तुम्हारी प्रॉपर्टी में कोई दिलचस्पी नहीं है। 

मुझे तो मेरे बाबूजी ने कुछ बताया भी नहीं था और शायद कभी बताते भी नहीं अगर उनकी कंपनी ना डूब रही होती। उसके बाद भी उन्होंने मुझे तुम्हारे परिवार को ऐसे सौंप दिया जैसे मैं कुछ भी नहीं।”

आरव अपने बालों में उंगलियां फेरते हुए बड़बड़ाने लगा — “नहीं... ये नहीं हो सकता। ये सब... झूठ है। नहीं... ये सब सपना है।”

सुहानी उसकी तरफ बढ़ी और उसके सामने नीचे बैठ गई, “ये सपना नहीं है, आरव…ये ही हकीकत है। मेरे लिए भी इन सारी बातों को मानना आसान नहीं था और मैं जानती थी कि ये सब तुम्हारे लिए कितना मुश्किल होने वाला है।”

आरव की आँखों से आंसू बहने लगे, उसकी दुनिया बिखर चुकी थी।

"तो फिर... इतने सालों से… मैं एक अनाथ का जीवन जी रहा था? और मेरे पापा... जिंदा थे?" आरव सुहानी के सामने जैसे बिखर रहा था। 

सुहानी ने धीरे से उसके सिर पर हाथ रखा और उसके बालों को सहलाने लगी। 

“वो आज भी तुम्हारे लिए लड़ रहे हैं…चुपचाप... पर सच्चाई के साथ।”

"गौरवी... मेरी माँ की छोटी बहन थीं?” आरव ने धीरे धीरे सुहानी की कही हर बात को अपने मन में दोहराते हुए पूछा। 

सुहानी ने हामी में बस अपना सिर हिला दिया।  

“आपके अंदर जो नफरत है न, वो आपकी नहीं, आपके साथ की गई धोखे की उपज है। आप खुद को पहचानिये आरव... आप वो नहीं हो, जो आपको बनाया गया है।”

आरव की साँसें गहरी होने लगीं।

आरव, जो अब तक पत्थर बना सुहानी की बातें सुन रहा था, अचानक अंदर से पूरी तरह बिखर गया। उसकी आँखों में आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे। वो एकदम खामोश हो गया था, जैसे उसके भीतर सब कुछ टूट रहा हो।

वो सुहानी की ओर झुका, काँपते हाथों से उसके गालों को छुआ और फुसफुसाया — “मैं… मुझे माफ़ कर दो, सुहानी…”

उसकी आवाज़ में दर्द था, पश्चाताप था “मैंने तुम्हारे साथ कितना बुरा बर्ताव किया… कितनी बार तुम्हारे जज़्बातों को ठेस पहुंचाई… और तुम… तुम सब कुछ जानने के बाद भी मेरे साथ खड़ी रही।”

सुहानी की आँखें भी भीग चुकी थीं, लेकिन उनमें सुकून था — जैसे वो आरव के इन शब्दों का इंतज़ार कर रही थी, ताकि वो खुद को फिर से जोड़ सके।

आरव ने उसका चेहरा अपने दोनों हाथों में थामा और धीरे से पूछा — “तुमने ये सब अकेले कैसे संभाला, सुहानी? ये सच… ये बोझ…डर…अकेलापन… कैसे झेला तुमने ये सब?”

वो आगे बोला, उसकी आवाज़ अब कांप रही थी — “मैं तो बस दुनिया के सामने एक ताकतवर पुरुष का मुखौटा पहनता रहा… मगर अंदर से मैं भी डरता था… और जब मुझे ये सब पता चला, तो मैं पूरी तरह से टूट गया हूं। लेकिन तुम… तुमने सब जानने के बावजूद भी मेरे बारे में सोचा… कि मैं ये सच कैसे सुन पाऊंगा… मैं इसे कैसे झेल पाऊँगा…?”

वो सुहानी के साथ ज़मीन पर नीचे उसकी गोद में सिर रखकर बैठ गया जैसे कोई परेशान बच्चा मां की गोद में सुकून ढूंढता है।

“मैंने तुम्हें कितनी बार गलत समझा, पर तुम फिर भी… मेरे लिए सब कुछ सहती रही।”

आरव उठता है और एकदम से उसके पास आकर सुहानी की आँखों में देखते हुए कहता है — “सुहानी… तुमने सिर्फ मेरी दुनिया नहीं बचाई… तुमने मुझे मेरे सच से मिलवाया है।”

उसने बेहद प्यार से सुहानी के माथे पर एक किस किया, और फिर उसके होंठों को अपने होंठों से चूम लिया — वो एक चुप, मगर बहुत कुछ कहती हुई सच्चे एहसासों से भरी उनकी पहली किस थी।

एक लंबा, सुकून भरा पल बीता, फिर आरव ने सुहानी का हाथ थाम कर वादा किया —

“अब मैं तुम्हें कभी अकेला नहीं छोड़ूंगा। हम साथ मिलकर सब बदलेंगे…सारे सच सामने लाएंगे। तुम अब इस संघर्ष के रास्ते पर अकेले नहीं हो। मैं तुम्हारा साथ दूंगा… हर एक कदम पर।”

सुहानी उसकी बात सुनकर चुपचाप मुस्कुराई, उसके आँसू अब आभार में बदल चुके थे। दोनों एक-दूसरे की आँखों में कुछ अनकहे जज़्बात तलाश रहे थे कि तभी उन्हें एकदम से ध्यान आया और वो शर्मा गए— उन्हें अचानक याद आया कि कमरे में कोई और भी मौजूद है। उनकी निगाहें सावित्री की ओर मुड़ीं, जो अब भी वहीं खड़ी थी, शांत…लेकिन उसकी आँखों में बहुत कुछ चल रहा था।

सावित्री ने उनकी झिझक पर मुस्कुराते हुए सिर हिलाया, जैसे कह रही हो — “मैं सब समझती हूँ।”

"आप दोनों को बहुत संभलकर रहना होगा," सावित्री ने एक गहरी साँस लेते हुए कहा, “राठौर परिवार से भिड़ना कोई बच्चों का खेल नहीं है। ये लोग जब किसी को मिटाना चाहते हैं, तो नाम-ओ-निशान तक नहीं छोड़ते।”

आरव की आँखों में अब हैरानी थी, और एक सवाल — “आप राठौर परिवार के बारे में इतना सब कुछ कैसे जानती हैं?”

सावित्री ने धीरे-धीरे आगे बढ़कर उसके चेहरे पर हाथ फेरा। उस स्पर्श में एक माँ जैसा अपनापन था, एक पुरानी पहचान की गर्माहट।

"बाबा..." उसकी आवाज़ में कंपन थी, "आपने शायद मुझे पहचाना नहीं। जब आप छोटे थे ना, तो 'सावित्री अम्मा', 'सावित्री अम्मा' कहते हुए मेरे पीछे-पीछे हमेशा घूमते रहते थे।"

आरव की आँखें चौड़ी हो गईं। जैसे किसी धुंदली पड़ चुकी याद को अचानक किसी ने साफ कर दिया हो।

"सावित्री अम्मा? आप... आप यहाँ? ऐसे घर में? क्यों?" आरव ने घर को देखते हुए पूछा।

सावित्री की मुस्कान बुझ सी गई, उसकी आँखों में बीते वर्षों की राख तैरने लगी।

"बाबा," उसने धीरे से कहना शुरू किया, "जिस दिन आपके पापा शमशेर बाबू ने राठौर हवेली छोड़ने का फैसला किया, वो रात सिर्फ उनका अंत नहीं थी, उस रात कई ज़िंदगियों ने मोड़ ली थी। 

उस रात उन्होंने मुझसे कहा था— ‘सावित्री, मुझे इन लोगों की दुनिया से गायब होना है। अगर मैं जिंदा रहा, तो मेरे अपने जिंदा नहीं रह पाएंगे।’

पहले मुझे समझ नहीं आया... मगर फिर उन्होंने जो बताया, वो सुनकर मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई। 

उन्होंने बताया कि कैसे अपने ही भाई और उनकी बीवी ने उन्हें एक जाल में फँसाया, कैसे उनकी प्यारी पत्नी—आरव बाबा की माँ पूर्वी, और प्रणव बाबा को मार दिया गया। उन्होंने भांप लिया था, कि अगला नंबर उनका है... और उनके ज़िंदा बचे बेटे का भी। वो खुद को मिटाना चाहते थे, ताकि आप दोनों बच सकें। मैंने उनकी मदद की…सारे सबूत मिटाए, ऐसा दिखाया जैसे वो नदी में बह गए हों। लोग समझें कि उन्होंने आत्महत्या कर ली। 

मगर फिर... लोगों को मुझ पर शक हुआ। कुछ ने मुझे धमकाया, कुछ ने चुपचाप नज़र रखी। मुझे डर था कि अगर मैं पकड़ी गई, तो सब कुछ सामने आ जाएगा। इसलिए मैं इस गाँव में आकर छिप गई। नाम बदल दिया, ज़िंदगी बदल दी। और फिर एक दिन... शमशेर बाबू काजल बिटिया को लेकर यहाँ आए, वो बेहोश थीं। उनका चेहरा खून से सना हुआ था। आँखों में डर... और दिल में टूटा हुआ विश्वास।

सावित्री की आवाज़ थरथरा गई। उसकी आँखें अब भीग चुकी थीं।

उन्होंने कहा, 'सावित्री, इसे बचा लो। ये मेरी पुरानी दोस्त है... और अब इसके पास कोई नहीं है।' मैंने पूछा — 'और आप?' तो बस मुस्कराए... और बोले, ‘अब मेरी ज़रूरत नहीं है... मेरा काम पूरा हुआ।’

कुछ दिन यहाँ रहे। काजल बिटिया को होश आया, मगर फिर... वो चले गए…बिना कुछ कहे।

वो हर दिन आप दोनों की तस्वीरें देखा करते थे। आपकी पहली स्कूल यूनिफॉर्म... पहला खिलौना… उन्होंने सब संभालकर रखा था। उन दोनों ने खुद को आप दोनों की यादों में कैद कर लिया था... और राठौर से इतनी दूर चले गए कि उनका नाम तक कोई न ले सके।

आप दोनों को देखने का बहुत मन करता था उन्हें। मगर आपकी हिफाज़त के लिए उन्होंने खुद से दूरी बना ली।

बाबा... आपके पापा आप से प्यार करते थे, बहुत ज्यादा। मगर उस प्यार की कीमत उन्होंने खुद को मिटाकर चुकाई।"

 

अगले अध्याय में—

आरव लेता है अपने असली पिता से मिलने का फैसला, सच की अंतिम परतें खुलती हैं और एक नया संघर्ष शुरू होता है — अपने हक़, अपनी पहचान और अपने प्यार के लिए।

सुहानी करती है अतीत से जुड़ी आखिरी परतें उजागर और सामने आते हैं वो नाम... जिनकी परछाइयाँ अब तक छुपी थीं। 

 

क्या आरव और सुहानी अपने अतीत का बदला ले पाएंगे? 

कहाँ है काजल और शमशेर? 

क्या दिग्विजय और गौरवी का खेल हो जायेगा खत्म? 

जानने के लिए, पढ़ते रहिये ‘रिश्तों का क़र्ज़।’

 

 

 

Continue to next

No reviews available for this chapter.