मंदिर के पीछे की उस शांत गली में, हवा सन्नाटे को चीर रही थी। सुहानी रणवीर की आँखों में देख रही थी — वो आँखें जो आज अतीत का आईना बनने जा रही थी। रणवीर ने एक लम्बी सांस ली और बड़ी हिम्मत से उसे एक-एक कर के सारी बातें बताने लगा।
“मुझे मालूम हुआ कि विक्रम तुमसे मिलने हवेली आया था। मना किया था मैंने उसे, ऐसा करने से। मगर वो भी मेरी तरह ही एक बाघी है।”
“आप विक्रम को कैसे जानते हैं अंकल?” सुहानी ने आश्चर्यचकित होकर पूछा।
“उसके बारे में बस इतना ही बता सकता हूँ कि उसने भी बचपन से बहुत कुछ खोया है। इसलिए अब वो आसानी से हार मानने वालों में से नहीं है और वो कहता है कि मैं कमज़ोर था, जो मैंने काजल को जाने दिया। वो तुम्हें पाने के लिए कुछ भी करेगा, सुहानी। कुछ भी!” रणवीर ने सुहानी को सतर्क करते हुए कहा।
“लेकिन मैं उसकी कभी थी ही नहीं, अंकल….उसे कोई गलतफहमी हुई है।” सुहानी ने रणवीर की आँखों में देखकर कहा।
जिस पर रणवीर बोले….“खैर, तुम्हें उसने जितनी भी बातें बताई सब सच हैं, केवल कुछ बातों के जिन्हें वो आज तक खुद नहीं जानता। तुम जानती हो मैंने वो घर क्यों छोड़ दिया था?”
सुहानी ने ना में सिर हिलाया।
“कोई कहता है, मुझे घर से निकाल दिया गया था।
कोई कहता है मैंने गुस्से में वो घर छोड़ दिया था क्योंकि उन लोगों ने काजल को मुझसे छीन लिया और कुछ तो कहते हैं, प्रॉपर्टी में हिस्सा न मिलने की वजह से मैंने घर छोड़ दिया था…मगर ये सब झूठ है।”
“तो फिर सच क्या है अंकल?” सुहानी ने पूछा।
“सब कुछ छिन जाने के बाद भी, उस घर में कुछ ऐसा था जो मेरा अपना था, सुहानी। मेरा भाई, मेरा सबसे अच्छा दोस्त, शमशेर राठौर।
मगर जिस दिन उसे दिग्विजय राठौर और गौरवी के षड्यंत्र के बारे में सब कुछ पता लगा, वो टूट गया। मगर उसने अपनी जान नहीं दी। वो तो उन सब को सबक सिखाना चाहता था और मैं भी! काजल और शिव की शादी को सालों बीत चुके थे। विशाल और तुम्हारा जन्म हो चुका था, जब काजल ने सब कुछ शिव को बताया था।
मगर मेरे पिता से वफादारी की वजह से, काजल के लाख मना करने पर भी उसने सब कुछ जाकर हमारे बाबूजी को बता दिया। उसके बाद जो हुआ वो तुम जानती हो। मगर वसीयत में आरव और उसकी होने वाली दुल्हन के नाम लिखे होने की खबर जब घर के लोगों को मिली… तो बवाल हो गया।”
रणवीर की आवाज़ काँपने लगी थी, जैसे हर शब्द उसके सीने में कांटे की तरह चुभ रहा हो।
"दिग्विजय और गौरवी का असली चेहरा सबके सामने आने लगा, वो आग बबूला हो गए थे। उन्होंने बाबूजी से कहा कि 'एक नौकर की बेटी और वो लड़का, जिसे ज़िंदा भी नहीं होना था, वो खानदान का वारिस नहीं बन सकते और फिर उसी रात शमशेर भाई गायब हो गए।"
सुहानी सन्न रह गई, “गायब... मतलब?”
"कहने को तो सबने कहा कि उन्होंने आत्महत्या कर ली। हवेली के पीछे वाली नदी के किनारे उनकी घड़ी और चप्पलें मिली थीं। मगर उनका शरीर कभी नहीं मिला, सुहानी। कभी नहीं!"
सन्नाटा फिर गहरा हो गया था। सुहानी की धड़कनें तेज़ हो गईं।
"और उसी रात मुझे भी ज़हर देने की कोशिश की गई। शुक्र था एक वफादार नौकर ने मुझे समय रहते बचा लिया। मैं सब छोड़कर वहां से भाग गया, नहीं तो आज मैं भी इस कहानी में सिर्फ़ एक मरा हुआ किरदार होता। और तब से आज तक... मैं छुपकर जी रहा हूँ, सिर्फ़ एक वजह से — आरव। वो मेरा भतीजा ही नहीं, मेरे भाई की आख़िरी अमानत है।"
सुहानी की आँखों में नमी थी, लेकिन सवाल अब भी बाकी थे।
“तो आप इतने सालों तक चुप क्यों रहे अंकल? और मुझे ये सब अब क्यों बता रहे हैं?”
रणवीर की आँखों में अचानक एक साया सा उतर आया था। वो पल भर को चुप हो गया। फिर बहुत धीमे लेकिन भारी लहजे में बोला —
"तुम जानती हो, सुहानी…वो सारी बातें पिताजी को कैसे पता चली, ये मालूम होने पर दिग्विजय और गौरवी ने क्या किया?”
सुहानी ने जवाब से डरते हुए धीमे स्वर में पूछा, “क्या किया उन्होंने, अंकल?”
"उन्हें जब ये मालूम चला कि ये बातें काजल के ज़रिये बाबूजी तक आईं हैं, तो दिग्विजय और गौरवी उसी दिन से उसकी जान के पीछे पड़ गए। उन्होंने सालों तक कई कोशिशें की काजल को खत्म कर देने की क्योंकि उसकी बेटी उनके हिस्से की प्रॉपर्टी की मालिक बनेगी, उनसे ये बर्दाश्त नहीं हुआ।
वो बार बार उसे मारने के नए तरीके ढूंढ़ते, और हर बार जैसे भगवान उसे बचा लेते…शायद उसके बच्चों के लिए। ज़हर, हादसे, सुपारी, ना जाने क्या-क्या, मगर वो हर बार बच निकली। शिव ने उसे और तुम दोनों बच्चों को कहीं छुपा कर रखा था, जहां कोई नहीं पहुंच सकता था और फिर एक दिन मुझे शिव का फ़ोन आया, कि काजल लापता है।”
सुहानी की आँखें शॉक में फैल गईं। रणवीर की आवाज़ काँपने लगी…
सुहानी ने घबराकर पूछा, “फिर क्या हुआ?”
रणवीर आँखों में आंसू लिए बोला, "एक दिन, किसी ने झूठ बोला — कि मैं बुरी हालत में हूँ…अकेला, घायल…और मुझे उसकी ज़रूरत है। काजल, जो कभी किसी की बातों में नहीं आई, उस दिन आ गई। वो बाहर निकली….अकेली।
और उस दिन से... वो फिर कभी नहीं लौटी।"
सुहानी का चेहरा सफेद पड़ गया।
रणवीर की आवाज़ अब विश्वास से भरी थी —
“लोग कहते हैं कि उसका एक्सीडेंट हो गया था। एक जली हुई गाड़ी मिली थी किसी सुनसान सड़क पर, बॉडी पूरी तरह राख हो चुकी थी — पहचान नहीं हो सकी। मगर... मैं नहीं मानता।मुझे लगता है कि वो ज़िंदा है। कहीं न कहीं, किसी कोने में... काजल आज भी ज़िंदा है।
क्योंकि जो औरत सब कुछ खोकर भी खड़ी रही, जिसने इतने हादसों का सामना किया…वो इतनी आसानी से हार नहीं सकती, सुहानी।"
रणवीर की ओर देखते हुए, सुहानी के रोंगटे खड़े हो गए थे। अब बात सिर्फ़ बदले की नहीं रही थी — अब ये लड़ाई एक माँ को ढूँढने की भी बन गई थी।
"तुमने पूछा मैं तुम्हें अब ये सब क्यों बता रहा हूं—क्योंकि अब वक्त आ गया है कि आरव को उसका सच पता चले, जैसे तुम्हें पता चला है। उसे जानना चाहिए कि वो किस खून से पैदा हुआ है, किस आग में जला है…और किस झूठ में बड़ा हुआ है। तुम वो रिश्ता हो, जो इस परिवार को बचा सकता है और फिर से संभाल सकता है।"
सुहानी की पलकों पर अब कोई संशय नहीं था — सिर्फ़ एक संकल्प।
"मैं आरव को सब कुछ बताऊँगी। लेकिन अपने तरीके से, मैं नहीं चाहती कि चीज़ें और बिगड़े। मैं पहले खुद कुछ तफ्तीश करना चाहूंगी।
आरव को हाल ही में कुछ पता चला है, और वो बिलकुल टूट से गए थे, बहुत मुश्किल से मैंने उन्हें संभाला है। मैं नहीं जानती कि वो ये सब अभी झेल पाएंगे या नहीं। मैं चाहती हूं कि मैं उन्हें सब कुछ बताऊँ, मगर मुझे शमशेर अंकल और माँ के ज़िंदा होने के कुछ सबूत चाहिए होंगे। मुझे आपकी मदद भी चाहिए होगी अंकल, और शायद विक्रम की भी।”
रणवीर हल्के से मुस्कुराया — “मैं तुम्हारी हर तरह से मदद करने को तैयार हूं सुहानी, और विक्रम तो तैयार ही बैठा है राठौर खानदान को बर्बाद करने के लिए।”
“मुझे नहीं पता अंकल मगर विक्रम से मुझे डर सा लगता है” सुहानी ने कहा।
“लगना भी चाहिए, लेकिन तुम्हें उससे डरने कि कोई ज़रूरत नहीं….तुम्हारे लिए तो वो जान भी दे दे।” विक्रम ने हँसते हुए कहा।
“इसी बात का तो डर है। वो मेरे बचपन का दोस्त है, मगर मैं कभी उसकी दीवानगी को समझ ही नहीं पाई…पर मुझे उसकी मदद की ज़रूरत है, बाकी मैं देख लूंगी। मुझे अब सब का पर्दाफ़ाश करना ही होगा, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए।” सुहानी ने एक दृढ फैसला लेते हुए कहा।
“अगर कोई ये कर सकता है, तो वो सिर्फ़ तुम हो, सुहानी।” रणवीर ने सुहानी पर गर्व महसूस करते हुए कहा।
क्या सुहानी अपनी माँ को ढूँढ पाएगी?
दूसरी ओर, सुहानी के घर छोड़ देने के बाद से आरव की बेचैनी अब काबू से बाहर हो चुकी थी।
उसी रात, बारिश शुरू होने लगी….हवेली की खिड़कियों पर पानी की बूँदें गिरती, जैसे काँच पर किसी की बेचैनी दर्ज हो रही हो। आरव ड्राइविंग सीट पर बैठ चुका था, गाड़ी स्टार्ट करते हुए उसके चेहरे पर सिर्फ़ एक ख्याल था — “जहाँ भी होगी, मैं उसे ढूंढ निकालूंगा।”
सुहानी, एक छोटे से बस अड्डे पर बैठी थी। आस-पास सिर्फ़ कुछ यात्री, और एक छोटी सी चाय की दुकान। उसकी आँखों में आँसू नहीं थे — पर एक अजीब सी शांति थी।
शायद इसलिए, क्योंकि पहली बार उसने खुद के लिए कोई फैसला लिया था।
सुहानी मन ही मन खुद से कहती है, “मैंने कई बार दूसरों की कहानियों में खुद को खो दिया, आरव। अब वक़्त है कि मैं अपनी कहानी खुद लिखूं — बिना डर, बिना झूठ के।”
आरव एक पुराने बस अड्डे पर पहुंच कर गार्ड से पूछताछ करता है…“इस वक़्त कौन सी बसें निकलती हैं?”
गार्ड उँगलियों पर गिनते हुए बताता है…. एक बस निकली थी — जयपुर की ओर।
“क्या उसमें कोई अकेली लड़की थी? काले सूट में, लंबी चोटी…”
“हाँ साहब... वो सीट नंबर सात पर बैठी थीं। बहुत देर तक खिड़की से बाहर देखती रहीं।”
आरव की आँखों में फिर से उम्मीद की चिंगारी जाग उठी। वो तुरंत गाड़ी मोड़ता है — अब मंज़िल सिर्फ़ एक है…“सुहानी”।
इधर बस के अंदर —
सुहानी अपने बैग से एक डायरी निकालती है। काजल की पुरानी डायरी, जिसके आखिरी पन्नों पर कुछ अधूरे शब्द हैं — एक पते की झलक... एक नाम…
नाम: “मिसेज़ शर्मा, कोटगांव हिल्स”
सुहानी धीरे से बुदबुदाती है, “क्या माँ वाक़ई वहां होंगी?”
और यहीं से शुरू होती है — दो कहानी।
एक, जो अपने प्यार को खोने से पहले वापस पाना चाहता है…
दूसरी, जो सच्चाई की तलाश में खुद को पाना चाहती है।
सुबह की हल्की धूप कोहरे की चादर से झांकती हुई कोटगांव हिल्स के घने जंगलों में उतर रही थी। सड़क उबड़-खाबड़ थी, और दूर-दूर तक किसी इंसानी आवाज़ का नामोनिशान नहीं था।
बस की रफ्तार धीरे-धीरे कम हुई, और कंडक्टर ने बिना कुछ कहे सुहानी की ओर इशारा किया — “ये आपका स्टॉप है।”
सुहानी ने खिड़की से बाहर झाँका — सामने सिर्फ़ एक पगडंडी दिख रही थी, जो पेड़ों के बीच कहीं खो रही थी।
उसके हाथों में काजल की डायरी थी। उसने उसे सीने से लगाया, और बस से उतर गई। पगडंडी पर चलते हुए, हर कदम के साथ सूखी पत्तियाँ चरमरा रहीं थीं। हवा में हल्की सी नमी थी, और पंछियों की आवाज़ों के बीच… एक अजीब सी शांति थी।
करीब 15 मिनट की चढ़ाई के बाद, सुहानी एक पुरानी कोठी के सामने आ खड़ी हुई। दीवारों से प्लास्टर उखड़ चुका था, खिड़कियाँ लकड़ी की थीं और उन पर मकड़ी के जालों का कब्ज़ा था।
एक पुराना बोर्ड झूल रहा था — “शर्मा निवास” — जिस पर वक़्त की धूल जमी हुई थी, दरवाज़ा बंद था।
सुहानी ने हिम्मत कर के हल्के से दस्तक दी….कोई जवाब नहीं मिला। अचानक, एक खिड़की के झरोखे से किसी ने पर्दा हटाया।
एक बूढ़ी औरत — झुर्रियों से भरा चेहरा, मगर आँखें तेज़। बाल सफेद और आँखों के नीचे हल्के काले धब्बे — जैसे सालों से सोई ना हों।
“कौन हो तुम?” उसने कठोर आवाज़ में पूछा।
सुहानी एक पल को झिझकी… फिर सीधा उसकी आँखों में देखती हुई बोली — “मुझे काजल जी के बारे में जानना है। क्या आप मिसेज़ शर्मा हैं?”
बूढ़ी औरत के चेहरे की कठोरता एक पल को कांप गई, उसने खिड़की बंद नहीं की… मगर कुछ देर तक कहा भी नहीं, फिर गहरी सांस लेते हुए दरवाज़ा खोला।
“अंदर आओ… मुझे सालों से तुम्हारा इंतेज़ार था”
उसके शब्दों में एक अजीब सी थकावट थी, और बेचैन कर देने वाला सलीका और वहीं से खुली है एक नई परत —
काजल के अतीत की, उसकी मौत की सच्चाई की और उस छिपे हुए नाम की जिसे सबने भुला दिया था…सिवाय एक औरत के — मिसेज़ शर्मा।
दूसरी तरफ, आरव जयपुर पहुँच चुका है। अब तक हर सीसीटीवी, हर स्टेशन जाने के बाद पूछताछ में सिर्फ़ एक सुराग मिला — “वो लड़की अपनी माँ की तलाश में निकली थी।”
“माँ? कौन सी माँ? उसका तो कहना था कि उसकी माँ मर चुकी है...”
वहीं कहीं किसी एक स्टेशन पर, उसे मिली एक CCTV फूटेज — जिसमें एक कंडक्टर, जो बस से उतरती लड़की का सामान उतार रहा था।
वो लड़की कोई और नहीं सुहानी थी—उसके हाथ में एक डायरी है। शायद ये वही डायरी है, जो उसने एक दिन चुपके से सुहानी के पुराने संदूक में देखी थी। उस दिन के बाद से सुहानी उस पर ताला लगाकर रखने लगी।
लेकिन अब आरव जान चुका था… उसका रास्ता अब सिर्फ़ सुहानी तक नहीं, एक गहरे राज़ तक जाता है।
क्या मिसेज़ शर्मा को मालूम है काजल आज भी जिंदा है?
क्या आरव सच्चाई से पहले सुहानी तक पहुँच पाएगा?
क्या काजल और शमशेर वाकई में ज़िंदा है?
जानने के लिए पढ़ते रहिए… 'रिश्तों का क़र्ज़'!
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