सुहानी अब गौरवी राठौर के ऑफिस में है। चमकदार शीशों से घिरा कमरा, अंदर बेहद शाही सजावट। दीवारों पर राठौर खानदान की पुरानी तस्वीरें, और बीच में एक बड़ी सी मेज़ जिसके पीछे बैठी है – गौरवी राठौर, तेज़ नज़रें, और चेहरे पर नकली मुस्कान। सामने खड़ी है सुहानी, सफेद और नीले रंग की सिंपल साड़ी में, लेकिन आँखों में बगावत की चमक लिए।

गौरवी अपनी जगह से उठती है, और धीरे-धीरे कमरे में चलती हुई कहती है, “तो तुमने सोच लिया कि एक मुलाक़ात दिग्विजय से करके, सारी सच्चाई जान जाओगी? वाह सुहानी, इतनी भोली नहीं हो तुम जितनी लगती हो…”

सुहानी धीरे से मुस्कुराते हुए कहती है, “और आप उतनी मासूम नहीं हैं, जितना जताती हैं… मुझे यकीन था कि आपको मेरी हर हरकत की खबर होगी। पर अब फर्क ये है कि मैं आप से डरती नहीं।”

गौरवी रुकती है, उसके चेहरे की मुस्कान थोड़ी कड़ी हो जाती है। उसी वक़्त, आरव, रणवीर के साथ उसके ऑफिस में होता है।

रणवीर के ऑफिस में शांति है, लेकिन माहौल गर्म। दीवारों पर बुकशेल्फ़, एक पुराने कैमरे का शोपीस, और मेज़ के सामने बैठा है – आरव राठौर। सामने रणवीर, आराम से कुर्सी पर बैठा, आंखों में जिज्ञासा और होंठों पर शहद की मिठास से लिपटी चालाकी लिए हुए।

रणवीर आरव को घूरते हुए कहता है, “तो अब तुम्हें भी शक होने लगा है, अपने ही खानदान पर?”

आरव धीरे से पीछे झुकते हुए कहता है, “शक नहीं, सवाल हैं। और मुझे उन सवालों के जवाब चाहिए, जो मुझे यहां तक खींच लाए हैं।”

रणवीर हंसता है और कहता है, “सवाल करने की आदत अच्छी है, पर जब जवाब दर्दनाक हों, तब हिम्मत चाहिए उन्हें सुनने की। क्या है वो सच्चाई जिसे तुम सुनने आए हो?”

अब गौरवी का ऑफिस, गौरवी उसकी तेज़ होती आवाज में कहती है, “तुम्हें नहीं पता, तुम किस आग से खेल रही हो। ये राठौर खानदान है, यहाँ लड़कियों की आवाज़ दबा दी जाती है, और उन्हें चुप रहना सिखाया जाता है।”

सुहानी आँखों में विश्वास और आग दोनों लिए कहती है, “मुझे डराना आसान नहीं, मेरी माँ की कहानी अधूरी रह गई, लेकिन अब मैं उसे पूरा करूंगी। आप जितना भी छुपाएँ, मैं सच सामने लाऊंगी।”

आरव कुछ पूछने ही वाला होता है, उससे पहले रणवीर गंभीर होकर कहता है, “तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हें जो बताया गया था, वो एक कहानी थी — एक मासूम बच्चे को दुश्मन बना देने के लिए गढ़ी गई कहानी?”

“अगर वो कहानी झूठ थी… तो मैंने जिनसे नफरत की, बेकसूर थे?”

रणवीर धीरे से एक पुराना पेपर स्लाइड करता है आरव की तरफ — एक फोटो, जिसमें आरव का बचपन, रणवीर और एक महिला के साथ है। रणवीर कहता है, “ये देखो। सच हमेशा तस्वीरों में नहीं होता, पर झूठ भी इनसे छुप नहीं सकता।”

उधर गौरवी गुस्से में कहती है, “तुम्हारे जैसे बच्चों को, जो ज़्यादा सवाल करते हैं, इस घर में ज़्यादा दिन टिकने नहीं दिया जाता।”

सुहानी सीधा जवाब देते हुए कहती है, “तो फिर देखिए कैसे मैं इस घर में टिकूंगी भी, और उसकी नींव को भी हिला दूंगी… मैं बेटी हूँ उस माँ की, जिसने आपकी साज़िशों के बावजूद जीना चुना।”

आरव धीरे से कहता है, "अगर सुहानी के पिता ने वाकई किसी को धोखा नहीं दिया था, तो मुझे जो बचपन से बताया गया था, वो सब केवल झूठ था?” 

रणवीर धीरे से हाथ बढ़ाते हुए कहता है, “क्योंकि जब कोई बच्चा अंधेरे में पाला जाता है, तो वो रोशनी से डरने लगता है। अब तुम्हारे पास एक मौका है – सच्चाई से दोस्ती करने का।”

गौरवी कुर्सी पर बैठती है, हताश। और कहती है, “तुम ये लड़ाई नहीं जीत सकती, सुहानी… तुम्हारे पास कोई नहीं है।”

सुहानी धीरे से जवाब देती है, “मेरे पास 'सच' है। और जब सच साथ हो, तो अकेलापन भी ताकत बन जाता है।”

रणवीर के ऑफिस में आरव धीरे से उठते हुए कहता है, “सच भारी होता है, रणवीर… पर अब मैं उसका बोझ उठाने के लिए तैयार हूँ।”

एक ओर गौरवी के ऑफिस में, सुहानी अपनी आँखों में आत्मविश्वास लिए गौरवी की आँखों में देखती है। दूसरी ओर, रणवीर के ऑफिस में आरव खड़ा होता है, जैसे बरसों की नींद से जागा हो।

“झूठ की दीवारें चाहे जितनी ऊँची हों, एक सच्चाई की साँस उन्हें गिरा सकती है…”

सुहानी और गौरवी आमने-सामने खड़े होते हैं। गौरवी अचानक अपने हाथ की फाइल मेज़ पर पटक देती है, उसकी आँखों में आग और अहंकार की चमक है। कमरे का तापमान जैसे कुछ डिग्री और बढ़ गया। उसकी आवाज़ अब और ज़्यादा कड़क और तीखी हो जाती है।

गौरवी तेज़ और ताने भरे लहजे में कहती है, “तुम खुद को समझती क्या हो, सुहानी?”

वो आगे झुकती है, उसकी नज़रों में नफ़रत की तपिश है…“तुम्हें क्या लगता है, कि तुम ये सब कांड करोगी – मुझसे छुपकर दिग्विजय से मिलोगी, कुछ सच जान लोगी, और किसी को पता भी नहीं चलेगा?”

फिर वो ज़ोर से हँसती है – एक कड़वी, घमंडी हँसी।

“बच्ची हो तुम, औरत बनने का नाटक कर रही हो। ये जो आँखों में चमक है ना… ये टूटेगी, जैसे तुम्हारी माँ टूटी थी। तुम क्या सोचती हो कि राठौर खानदान की जड़ों को इतनी आसानी से हिला दोगी?”

सुहानी धीरे से, लेकिन ठहराव से जवाब देती है…“मुझे कुछ बनने की ज़रूरत नहीं, मैं पहले से ही वो औरत हूँ जो आप से डरती नहीं और रही बात कांड की—” वो एक कदम आगे बढ़ती है, उसकी आवाज़ धीमी लेकिन गूंजदार होती है, “कभी आपने सोचा है, गौरवी जी… कि अगर मैं केवल कांड ही कर रही हूँ, तो फिर आपके चेहरे पर इतना डर क्यों है?”

गौरवी कुछ पल के लिए सन्न रह जाती है।

सुहानी आँखों से सीधी चुनौती देते हुए कहती है, “आपको डर इस बात का नहीं कि मैं क्या करूँगी… आपको डर है कि मैं सच जान गई हूँ। और जब कोई औरत सच जान जाती है, तब वो सिर्फ सवाल नहीं पूछती—वो हिसाब भी लेती है।”

गौरवी अपने गुस्से और सवालों की बौछार से सुहानी को दबाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन सुहानी की नज़रें अब भी स्थिर थीं — जैसे तूफ़ान के बीच खड़ी हो।

गौरवी अभी अपना वाक्य पूरा ही कर रही थी कि तभी—सुहानी बिलकुल सपाट, लेकिन तीखे स्वर में पूछती है, “दिग्विजय राठौर कहाँ हैं?”

गौरवी का चेहरा पल में ज़र्द पड़ गया। उसकी आँखों में एक हल्का झटका सा उभरा — पल भर को वो सुहानी की आँखों में झाँकती रही, जैसे ये तय कर रही हो कि कितना जान चुकी है ये लड़की।

सुहानी थोड़ा और तीखे स्वर में, अब सवाल दोहराती है, “मैंने पूछा… दिग्विजय राठौर कहाँ हैं, गौरवी जी?”

कमरे की हवा में अचानक एक भारीपन सा घुल गया। गौरवी अब धीरे से कुर्सी पर टेक लगाकर बैठ गई, चेहरे पर बनावटी मुस्कान लाने की कोशिश की, लेकिन आँखों में बेचैनी अब भी साफ़ झलक रही थी।

गौरवी हल्की हँसी के साथ कहती है, “क्या बेतुका सवाल है ये… वो कोई बच्चा नहीं जो गुम हो जाए।”

सुहानी शांति से पूछती है, लेकिन उसका हर शब्द गूंजता हुआ सुनाई देता है, “दिग्विजय राठौर आख़िरी बार आपके ऑफिस से निकले थे… गुस्से में, फूले हुए। और आप से बहस के बाद उन्होंने रणवीर को फोन किया था। मुझे यक़ीन है, वो उसी के पास गए थे। और तब से—वो गायब हैं।”

गौरवी की उंगलियाँ अनजाने में मेज़ पर थिरकने लगी थीं — ये एक बेचैनी का इशारा था।

सुहानी एक कदम और आगे बढ़ते हुए कहती है, “आपको क्या लगा, कि केवल आप ही की निगाहें मेरी हरकतों पर रहती है? आप लोगों ने क्या किया उनके साथ? कैसा डर है आपको, कि वो वापस लौटे तो सब कह देंगे?”

गौरवी अब रुख बदलते हुए, और स्वर में कठोरता लाते हुए कहती है, “बहुत हो गया ये खेल, सुहानी। तुम नहीं जानती तुम किससे टकरा रही हो।”

सुहानी साफ़-साफ़ कहती है, “जानती हूँ….राठौर खानदान के उन्हीं लोगों से, जिनकी जड़ें अब सड़ चुकी हैं। और सच मानिए गौरवी जी, अब मैं डरती नहीं, मैं सिर्फ़ ढूँढ रही हूँ — अपने जवाब… और अपने दुश्मनों को।”

सुहानी गौरवी की आँखों में झाँकती हुई, अपने शब्दों का प्रभाव नापते हुए, कहती है “और शायद... आपको ये भी पता चल गया होगा, कि दिग्विजय राठौर ने ही मुझे आपके बाकी अवैध धंधों के ठिकानों की जानकारी दी थी।”

गौरवी की आँखों में एक बार फिर वो चौंकने की झलक आई। चेहरा सख़्त हो गया — जैसे कोई ऐसे सच सुन लिया हो, जिसे उसने बहुत सावधानी से छुपाया था। 

सुहानी अब और नज़दीक आते हुए, स्वर में कड़वाहट और दृढ़ता के साथ कहती है, “वो गुस्से में थे… बुरी तरह आहत और अपमानित। अगर वो किसी और तक पहुँच जाते, तो शायद... इस घर की हर परत खुल जाती।”

कमरे में सन्नाटा था। बाहर से आती हल्की हवा की सरसराहट अब और भी भारी लग रही थी।

“इससे पहले कि वो कुछ और कह पाते...आप लोगों ने उन्हें गायब करवा दिया।”

फिर एक लंबा विराम। सुहानी की साँसें तेज़ थीं, लेकिन चेहरा अब भी शांत था। आँखों में एक जुनून — सच्चाई की तलाश का।

“अब आप चाहे जितना भी मुस्कराइए गौरवी जी, मैं जानती हूँ, इस साज़िश के हर धागे में कहीं ना कहीं… आप और रणवीर शामिल हैं।”

दूसरी ओर – रणवीर के ऑफिस में, एक शांत लेकिन भारी माहौल था।

आरव अब तक चुप बैठा था। सामने बैठा रणवीर उसे नज़रों से पढ़ने की कोशिश कर रहा था, जैसे हर खामोशी को भाँप लेना चाहता हो। लेकिन आरव ने अब चुप्पी तोड़ी।

आरव धीरे से, सोचते हुए बोलता है, “एक बात समझ नहीं आ रही रणवीर चाचू…”

रणवीर हल्का मुस्कराया, जैसे किसी अनुमान की पुष्टि हो रही हो…“कौन सी बात, आरव?”

आरव अब सीधा उसकी आँखों में देखते हुए कहता है, “जब से मेरी याददाश्त गई है… तब से माँ और ताऊजी बार-बार ये समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि आप कितने अच्छे हैं… आप कितनी बार हमारी मदद कर चुके हैं…”

वो रुकता है, फिर गहरी साँस लेकर बोलता है — “लेकिन वही माँ… वही ताऊजी… जिन्होंने बचपन से ही आपसे मुझे सिर्फ नफ़रत करना सिखाया… सिर्फ मेरे अंदर आपके खिलाफ ज़हर भरा गया...वो अचानक सिर्फ इसलिए, कि आपने हमें कुछ गुंडों से बचा लिया… आपको 'भरोसेमंद' मानने लगे हैं? इतनी जल्दी?”

उसका स्वर अब और ठोस हो गया था। “ये सब कुछ… थोड़ा अटपटा नहीं लगता आपको?”

रणवीर का चेहरा क्षणभर के लिए स्थिर हुआ। एक पल को जैसे उसके चेहरे की मुस्कान में भी असहजता आ गई। लेकिन वो जल्दी ही अपने स्वर में सहजता लौटाते हुए कहता है।

रणवीर गंभीरता से, लेकिन चालाकी से बोलते हुए, “शायद वो वक्त की मार है, आरव। कभी-कभी हालात इंसान को पुराने दुश्मनों से भी हाथ मिलाने पर मजबूर कर देते हैं। और फिर… सच्चाई भी तो वक्त के साथ बदलती है। तुम्हें क्या लगता है? क्या मैं अब भी वो ही 'बुरा इंसान' हूँ, जैसा तुम्हें सिखाया गया था?”

आरव कुछ नहीं कहता। लेकिन उसकी आँखों में अब भी रणवीर को शक दिखता है। रणवीर के ऑफिस में बैठा आरव बाहर से शांत, लेकिन अंदर से चौकन्ना था। उसके चेहरे पर उलझन और शंका की परतें थीं, पर मन में चल रहा था एक और ही खेल।

किसी को भी ये पता नहीं लगना चाहिए था — कि आरव राठौर की याददाश्त लौट चुकी है….पूरी तरह। वो जानता था, कि अगर ये बात गौरवी या रणवीर को ज़रा भी भनक लग गई, तो उनका अगला वार ज़्यादा खतरनाक हो सकता है। इसलिए उसे अब एक्टिंग करनी थी। संवेदनशील भी दिखना था, उलझा हुआ भी, और कहीं-कहीं तो टूटा हुआ भी — ताकि सामने वाला ये समझे कि आरव अब भी अपनी पहचान, अतीत और रिश्तों की उलझन में उलझा है।

वो जानता था, असली खेल अभी शुरू नहीं हुआ है — दो दिन बाद वो चाल चलेगा, जो पूरे राठौर साम्राज्य की बुनियाद हिला देगी। लेकिन तब तक…उसके चेहरे पर मासूम शक, और मन में गहरी चालाकी का पर्दा बना रहना ज़रूरी था। क्योंकि एक भी गलत इशारा, और ये लोग उसे खत्म करने में एक पल भी नहीं लगाएंगे।

इसलिए उसने रणवीर के सामने वो 'अटपटी' बातें कीं…शक ज़ाहिर किया, उलझन जताई…ताकि रणवीर ये सोचें कि आरव अब भी एक टूटा हुआ, अपने ही विचारों में खोया हुआ लड़का है। और वही उनकी सबसे बड़ी भूल बनने वाली थी।

 

दिग्विजय राठौर, ने सुहानी के ऑफिस से निकलने के बाद ऐसा क्या किया, जिसकी वजह से उसे घंटे भर में गायब कर दिया गया? 

क्या वो दोबारा सामने आएगा? 

क्या विक्रम तब तक जान पायेगा कि आख़िर किसने किडनैप किया है, काजल को? 

क्या विशाल अपने बाउजी को, जेल की कैद से बाहर निकाल पायेगा।

आगे की कहानी जानने के लिए पढ़ते रहिये, रिश्तों का क़र्ज़।

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