सुबह के 6 बज चुके थे। पूरे शहर पर जैसे थकावट और सन्नाटा एक चादर बन कर लिपट चुकी थी। सड़कें सुनसान थीं, स्ट्रीट लाइट्स की पीली रोशनी धुंधली-सी नींद में झपकियाँ ले रही थीं। हवा में हल्की ठंडक थी, लेकिन उस गाड़ी के अंदर जो अभी-अभी राठौर हवेली के फाटक में दाखिल हुई थी—वहाँ हर एहसास बर्फ़-सा ठहरा हुआ था।
गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर आरव था—चेहरे पर थकावट की गहराई, आँखों में उलझनों का धुआँ। बगल वाली सीट पर सिर एक तरफ झुका हुआ, नींद में डूबी हुई सुहानी थी। उसके माथे पर कुछ लटें चेहरे पर गिर रही थीं, होंठों पर हल्की बेचैनी थी, और उसकी साँसों में नींद का पहरा झलक रहा था।
आरव ने गाड़ी रोकी। हाथ धीरे से आगे बढ़ाया और बिना उसे जगाए, सुहानी के माथे से लटें पीछे कर दीं। कुछ पल उसके चेहरे को निहारता रहा—जैसे वो पहली बार उसे देख रहा हो। इतने तूफानों के बीच भी, उसमें एक सुकून था जो आरव को अंदर तक हिला देता था।
कुछ घंटे पहले…
आरव ने जैसे ही अपना काम खत्म किया, वो फौरन सुहानी को लेने ऑफिस पहुँच गया था। लेकिन वहाँ का माहौल असामान्य था। गार्ड्स गायब थे, लाइट्स बंद थीं और सिक्योरिटी अंदर भाग-दौड़ में लगे हुए थे।
"क्या हुआ?" आरव ने तेज़ आवाज़ में पूछा।
“सर… अभी-अभी रेड हुई है तीन लोकेशनों पर। दिग्विजय सर और मैडम गौरवी का नाम... तीनों केस में आया है। सीबीआई के अंडर है अब सब।”
आरव का कलेजा कांप गया। वो फौरन अंदर भागा—हर कमरे को चेक करता हुआ, हर कोने को घूरता हुआ, जैसे कोई डर हो कि सुहानी कहीं गायब न हो गई हो। और फिर… कॉन्फ्रेंस रूम के कोने में पड़ा एक छोटा सा सोफ़ा—और उस पर बैठी, नींद में लिपटी सुहानी। उसकी गोद में फाइल्स थीं, हाथ में एक कलम थी जो गिर चुकी थी, और कंधों पर उसकी शॉल ढलक गई थी।
आरव कुछ पल वहीं खड़ा रहा। उस लड़की को देखते हुए जो शायद आज पहली बार इतने सुकून से सोई थी… और उसे ये भी नहीं पता था कि आज की रात ने उसकी ज़िंदगी का नक्शा बदल दिया है।
अब, हवेली के सामने दोनों खड़े थे।
आरव ने धीरे से कार का दरवाज़ा खोला और सुहानी को आवाज़ दी, “सुहानी… उठो, हम घर आ गए हैं।”
सुहानी ने आँखें खोलीं, कुछ क्षण के लिए अनजान-सी देखती रही… फिर एकदम से सीधी हो गई, “हम… हम पहुँच गए?”
“हाँ,” आरव ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “और वैसे भी... तुम बहुत थक गई हो, घर चलो, कमरे में जाकर आराम से सो जाना।
सुहानी कुछ पल उसे देखती रही। उसकी मुस्कान में अजीब-सी शांति थी, मानो कह रही हो—‘आपको देख कर मेरी सारी थकान मिट गई।’
दोनों धीरे-धीरे हवेली के अंदर दाखिल हुए। हवेली के अंदर गहरी ख़ामोशी थी, लेकिन ये खामोशी सुकून भरी नहीं थी—ये वैसी खामोशी थी, जैसे कोई तूफ़ान दबे पाँव घर के भीतर घुस आया हो।
जैसे ही वो अंदर आए, उन्हें मुख्य हॉल की दीवार पर कुछ पुलिस टेप्स दिखीं। दो नौकरों की फुसफुसाहट कानों में पड़ी— “कह रहे हैं… गौरवी मैडम ने जो कागज़ात जलाने की कोशिश की थी, उसका वीडियो सीसीटीवी में आ गया है।”
“और दिग्विजय सर… उन्होंने जिस कंपनी के नाम पे करोड़ों का घोटाला किया था… वो फाइल भी अब हाथ लग गई है।”
आरव और सुहानी—दोनों ने एक-दूसरे की तरफ देखा।
“अब आगे क्या होगा?” सुहानी ने पूछा।
“वही जो हमने प्लान किया था सुहानी। जिस तरह के सबूत इनके खिलाफ मिले हैं, अब पुलिस भी इनके पैसों पर नहीं बिक सकती।”
उसी वक़्त, ऊपर की बालकनी से कोई उनकी ओर देख रहा था….गौरवी।
उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। सिर्फ़ एक ठंडी, शांत मुस्कान। जैसे उसे यकीन हो कि वो आज भी सबका खेल बिगाड़ सकती है।
उसने आरव को देखा… फिर सुहानी को… और फिर सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए बोली— “तुम लोग थक गए होगे। चलो, आ जाओ… कुछ बातें करनी हैं। बहुत सी अधूरी कहानियाँ हैं इस हवेली में… जिन्हें अब ख़त्म किया जाना चाहिए।”
आरव और सुहानी के कदम जैसे ज़मीन पर जम से गए और तभी… हवेली के कोने में रखा एक पुराना झूला अपने-आप झूलने लगा। जैसे किसी अनदेखी आत्मा ने उस रात, उस हवेली में अपने वजूद का इशारा दिया हो।
आरव के ज़ेहन में जैसे कोई भूचाल चल रहा था। एक ओर दिग्विजय और गौरवी के काले कारनामों का पर्दाफाश हो रहा था—और दूसरी ओर सुहानी की वह तस्वीर, जो उसकी आंखों में अब भी साफ़ तैर रही थी।
एक ऑफिस की हल्की नीली रोशनी में, सोफ़े पर बैठी, झुकी हुई पीठ, थके हुए हाथ, और आँखें बंद किए नींद में डूबी सुहानी। पर उस मासूम-सी नींद के पीछे... एक पूरी रात की लड़ाई छुपी थी।
बीते रात के 11:00 बजे का समय…
रात के 11:00 बजे से ही चारों तरफ हलचल मच गई थी। दिग्विजय के जाते ही, सुहानी भी निकल पड़ी। अलग-अलग तीन स्थानों पर एक साथ छापे पड़े थे—जहाँ नाबालिग बच्चों को जबरन काम पर लगाया जा रहा था, अवैध ट्रैफिकिंग का अड्डा था, और एक अवैध मेडिकल ट्रायल सेंटर चल रहा था।इन सबका लिंक… गौरवी और दिग्विजय राठौर से जुड़ा था।
सुहानी की टीम—जिसे उसने खुद तैयार किया था—पूरे मिशन की अगुवाई कर रही थी। पुलिस, NGO volunteers, फोरेंसिक टीम्स—हर कोई उसके निर्देशों पर काम कर रहे थे।
रेड शुरू होते ही अफरा-तफरी मच गई थी। कुछ लोग भागने की कोशिश में थे, कुछ दस्तावेज़ जलाने में लगे थे… लेकिन सुहानी की प्लानिंग इतनी सटीक थी कि सब कुछ कंट्रोल में रहा। कहीं छत के रास्ते से बच्चों को बाहर निकाला गया… कहीं एंबुलेंस भेज कर घायल मजदूरों को रेस्क्यू किया गया। और जब एक जगह एक गैस सिलेंडर लीक होने लगा था, तो सुहानी खुद अंदर गईं, और अंदर जाकर अपनी टीम को बाहर भेज दिया।
“क्या तुम्हें अपनी जान की कोई परवाह नहीं है?” उसकी एक साथी ने पूछा था।
“उनकी जान पहले है, मेरी बात बाद में।” सुहानी ने थकी हुई लेकिन दृढ़ आवाज़ में कहा था।
जब तक रात के ढाई बजे, करीब 2500 लोगों और बच्चों को सुरक्षित निकाला जा चुका था।
हर rescued soul सुहानी की आंखों में उतरता गया—जैसे वो हर पीड़ा को अपने अंदर समेट रही थी। रात के पौने तीन बजे, आख़िरी rescued बच्चों की बस जब NGOs के सुरक्षित शेल्टर होम्स के लिए रवाना हुई, तब जाकर सुहानी ने चैन की सांस ली।
वो लौटकर ऑफिस आई। चारों तरफ शांति थी, फाइल्स एक-दूसरे के ऊपर बिखरी पड़ी थीं। उसका फोन लगातार बज रहा था—जगह-जगह से फीडबैक, मीडिया कॉल्स, पुलिस रिपोर्ट्स। पर अब उसकी आँखें जवाब दे रही थीं।
वो वहीं कॉन्फ्रेंस रूम में बैठी, एक रिपोर्ट हाथ में लिए, दूसरे हाथ से अपने माथे को सहलाते हुए, एक गहरी सांस लेकर... झपकी ले बैठी। और यही झपकी... गहरी नींद में बदल गई।
जब 4 बजे आरव उसके ऑफिस पहुंचा था, तब उसे सुहानी एक सोफ़े पर सोई हुई मिली थी। आरव दरवाज़ा धीरे से खोलता है। ऑफिस की हल्की पीली रोशनी एक कोने में अब भी जल रही थी, जिससे वह कॉन्फ्रेंस रूम के अंदर की हलचल का अंदाज़ा लगा सका।
वहाँ, टेबल पर बिखरे फाइलों और रिपोर्ट्स के बीच, एक शांत-सी छवि बैठी थी—सुहानी।
वो सोफ़े पर बैठी थी, शरीर थकावट से झुका हुआ, गर्दन एक तरफ हल्की सी झुकी हुई, माथे पर बिखरे कुछ बालों की लटें—जिन्हें हटाने की वो कोशिश करते-करते शायद नींद के आगोश में चली गई थी।
आरव के क़दम जैसे थम से गए, उसने अपनी सांस रोक ली। जैसे उसे डर था कि उसकी मौजूदगी कहीं उस नींद में डूबी सुहानी को चौंका न दे। वो कुछ देर वहीं खड़ा रहा… फिर बहुत धीरे से, बगैर कोई आवाज़ किए, उसके सामने की कुर्सी खींच कर बैठ गया। उसकी नज़रें सुहानी के चेहरे पर थीं।
वो चेहरा… जो दिन में हज़ारों भावों से गुज़रता था—जिद, गुस्सा, दर्द, हिम्मत… अब उसी चेहरे पर केवल एक सुकून था। एक ऐसा सुकून, जो शायद आरव ने कभी देखा ही नहीं था।
आरव की आंखों के सामने जैसे सारी तस्वीरें तैरने लगीं। उसे अब समझ आ रहा था कि इस मासूम-सी लगने वाली लड़की में एक फौलादी इरादा और शेरनी-सी हिम्मत छुपी थी। वो सिर्फ़ एक बेबस पत्नी नहीं थी... वो एक ऐसी साहसी लड़की थी, जो अपने अतीत के साए में भी दूसरों का वर्तमान बचा रही थी।
आरव ने बिना आवाज़ किए सुहानी की तरफ देखा। उसकी आँखों से आंसू की एक बूंद गिरी। शायद किसी डरावने सपने से निकली थी… या किसी बीते दर्द की परछाईं से। वो आगे बढ़ा, बहुत ही धीमे हाथों से उसकी आँखों से गिरी वो एक बूंद आँसू पोंछ दी उसने।
"तुमने आज जो किया… अगर कोई और होता, तो शायद कभी ना कर पाता," उसने फुसफुसाते हुए कहा, जैसे वो बात सिर्फ़ खुद से कर रहा हो।
सुहानी के होंठों के कोने में एक बहुत हल्की-सी मुस्कान थी… न ज़्यादा बड़ी, न ज़्यादा खुली… बस इतनी कि किसी जानने वाले को बता दे—“मैं ठीक हूँ।”
आरव को समझ नहीं आया कि ये सुकून उसे क्यों चुभ रही है… या शायद वो खुद को दोषी मानता था उसे बीते दिनों में छिन जाने का। फिर उसके मन में एक ख़्याल आया…ये सुकून दो वजहों से आया है।
पहली—सुहानी ने आज सैकड़ों बच्चों को अँधेरे से निकाल कर रोशनी में पहुंचाया था। अपनी जान की परवाह किए बिना, उसे लगा था कि वो जीत गई। और दूसरी—शायद… क्योंकि उसे पता था कि आरव आएगा।
वो थकी हुई थी, टूटी नहीं थी। और उसे यकीन था कि जब वो थक जाएगी, तो कोई है… जो उसे उठा ले जाएगा। आरव की आंखों में एक हल्की सी नमी उतर आई।
"तुम अब भी मुझ पर भरोसा करती हो, सुहानी?" उसने मन ही मन पूछा।
वो थोड़ा आगे झुका। उसकी उंगलियों ने बहुत धीरे से, जैसे हवा को छूते हुए, सुहानी के माथे से वो बिखरी लटें हटाईं। सुहानी की आंखों की पलकें हल्की सी फड़कीं… पर उसने आंखें नहीं खोलीं। जैसे उसे उस छुअन की आदत हो।
आरव बस देखता रहा… और मुस्कुरा दिया। उसने अपनी जैकेट उतारकर बहुत हल्के से सुहानी पर डाल दी, ताकि उसे ठंड न लगे। और फिर… वहीं उसी कुर्सी पर बैठा गया। नींद अब उसके करीब भी आ रही थी। पर उससे पहले… वो उस सुकून को जी लेना चाहता था, जो उसने कभी कमाया नहीं था… पर शायद अब… समझने लगा था।
अब जब वो सुहानी के साथ गौरवी के सामने खड़ा था, तो आरव की आंखों में एक अजीब सी बेचैनी तैरने लगी। उसके भीतर कहीं गहराई में एक अजीब सा तूफ़ान उठ रहा था। उसने सुहानी के चेहरे की ओर देखा — उसकी मासूम, थकी हुई आंखें, होंठों पर जमी चुप्पी और उसके चेहरे पर वो गहरा, पर शांत सुकून। वही सुकून, जिसे देख कर आरव का दिल हमेशा थोड़ी देर को शांत हो जाया करता था।
लेकिन आज, उस सुकून में भी उसे एक डर छिपा नज़र आया — वही डर, जो उसके अपने दिल में था। वो जानता था… ये सुकून फिर से छिनने वाला है।
गौरवी, अपने सधे हुए कदमों के साथ, शाही अंदाज़ में आगे बढ़ रही थी। उसके चेहरे पर हमेशा की तरह कठोरता की एक चादर थी — पर आज, उसमें एक अतिरिक्त तीखापन था। वो दोनों चुपचाप उसके पीछे चलने लगे। सुहानी की साड़ी का पल्लू आरव की उंगलियों को छूता जा रहा था, जैसे कोई टूटा रिश्ता दोबारा जुड़ने की कोशिश कर रहा हो।
और तभी…उनके पीछे एक और कदमों की आहट उभरी — धीमी, मगर आत्मविश्वास से भरी हुई….रणवीर।
आरव की आंखें चौकन्नी हो गईं, सुहानी के पांव थम से गए। गौरवी के चेहरे पर एक पल को कठोरता के स्थान पर हल्का सा डर उभर आया, पर उसने तुरंत अपने आप को संभाल लिया।
"रणवीर," गौरवी ने जैसे अपने गले में फंसी हुई सांस को बाहर निकालते हुए कहा।
रणवीर की चाल में न कोई जल्दबाज़ी थी, न कोई घबराहट। उसकी आंखें सीधी गौरवी पर टिकी थीं, पर उसका ध्यान आरव और सुहानी दोनों पर भी बराबर था। उसके हाथ में एक पुरानी डायरी थी — वही डायरी, जिसमें अधूरे रिश्तों, झूठे इल्ज़ामों और छिपी सच्चाइयों की दास्तानें दबी हुई थी। काजल की डायरी।
और उसी क्षण, हवाओं में एक अनकहा तूफ़ान महसूस हुआ। जैसे हवाएं भी जान गईं हों — आज एक नया अध्याय खुलने वाला है।
कैसे मिली रणवीर को वो डायरी? क्या होगा डायरी का?
गौरवी की ताश की हवेली उसकी आँखों के सामने ही ढेहने लगी, मगर फिर किस नए साजिश की चिंगारी जल रही थी उसकी आँखों में?
और कहाँ गया दिग्विजय राठौर?
आगे की कहानी जानने के लिए पढ़ते रहिये, रिश्तों का क़र्ज़।
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