जादुई डायरी में लिखा था कि चाहे जो हो जाए अपने मन पर डर को हावी नहीं होने देना है, लेकिन पार्थ और रागिनी पूरी तरह से इस सीख को शायद समझ नहीं पाए और इसीलिए पार्थ के घर के बदलते माहौल से घबराने लगे। घर की लाइट चली गई थी, ठंडी हवा अचानक ही चलने लगी थी और खिड़कियां, दरवाज़े बजने लगे थे। पार्थ ने जाकर घर का बिजली का मीटर देखा तो उसमें कोई प्रॉब्लम नहीं थी| अचानक से घर के बाहर से ज़ोर-ज़ोर से आवाज़ आने लगी जैसे कोई दरवाज़ा पीट रहा हो| रागिनी कमरे में थी और घबरा रही थी। उसने पार्थ से चिल्लाते हुए कहा,
रागिनी– पार्थ जल्दी यहाँ आओ| मुझे डर लग रहा है पार्थ। ये.. ये सब क्या हो रहा है?
पार्थ ने हिम्मत की और मेन डोर खोलकर देखा, तो बाहर कोई नहीं था| रागिनी अभी भी डर रही थी और पार्थ को बुलाया रही थी। वह दौड़ कर रागिनी के पास आया। डर के मारे रागिनी के चेहरे पर पसीना आ गया था| उसका पूरा बदन काँप रहा था| रागिनी बालकनी की ओर इशारा करते हुए बोली,
रागिनी– अभी-अभी वहां किसी का साया था| मैंने खुद अपनी आँखों से देखा, वो साया बालकनी से अन्दर आया और अचानक से गायब हो गया| ये सब क्या हो रहा है पार्थ? मुझे बहुत डर लग रहा है|कोई है यहां, कोई है।
रागिनी की बात सुन कर पार्थ के होश उड़ गए| उसने रागिनी को समझाने की कोशिश की कि उसे कोई ग़लतफहमी हुई होगी लेकिन रागिनी सुनने को तैयार नहीं थी। वो बार-बार एक ही बात बोल रही थी कि उसने एक साया देखा है| तभी एक बार फिर से साया घर के अन्दर नज़र आने लगा| इस बार पार्थ ने भी उस साए को देखा और उसे रागिनी की बात पर यकीन हो गया| दोबारा उस साए को देख कर रागिनी और भी ज्यादा डर गयी| पार्थ ने टॉर्च मार के देखा, तो न कमरे में उन दोनों के अलावा कोई था, न ही कमरे के बाहर कोई था। पार्थ रागिनी से बोला,
पार्थ – तुम एक काम करो, अपने घर चली जाओ| यहां रहना तुम्हारे लिए सेफ नहीं है|
रागिनी पार्थ को इस डरवाने माहौल में अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी|
रागिनी - तुम अकेले यहां नहीं रहोगे। तुम भी मेरे साथ मेरे घर चलो| इस समय यहां किसी का भी अकेले रहना अभी सेफ नहीं है। कुछ तो गड़बड़ है पार्थ। हम बाद में देख लेंगे, फिलहाल यहां से चलो।
पार्थ – रागिनी, तुम मेरी फ़िक्र मत करो। मैं आज रात किसी फ्रेंड के घर सो जाऊंगा| अभी फ़िलहाल तुम अपने घर जाओ। मेरी बात समझो, प्लीज़।
रागिनी को उसकी बात माननी पड़ी, फिर पार्थ रागिनी को टैक्सी करवाने उसके साथ गया। जाने से पहले रागिनी बार-बार पार्थ को उसके घर में सोने से मना कर रही थी| उसने ये भी कहा कि अगर कहीं भी जगह ना मिले तो वो उसके घर आ सकता है| पार्थ ने भी बिना कुछ कहे हां में सिर हिला दिया| रागिनी के वहां से जाने के बाद पार्थ अपने घर जाने से घबरा रहा था| वह घर जाने की जगह पास के एक कॉफ़ी शॉप चला गया| वह सोचने लगा की क्या उसके घर में सच में कोई साया है, जो उसे परेशान करना चाहता है या उसे भ्रम हुआ है? फिर उसने सोचा की रागिनी को भी साया दिखा था। ये भ्रम नहीं हो सकता।
पार्थ के लिए अब सब से बड़ा चैलेंज वापस अपने घर जाना था| यश और रागिनी के अलावा उसका कोई फ्रेंड भी नहीं था, जिसके घर जाकर वह सो सके| यश का घर दूर होने की वजह से वह वहां जा नहीं सकता था और रागिनी के घर जाना उसके लिए थोड़ा ऑक्वर्ड था| आखिर में उसने फैसला किया कि वो अपने ही घर जायेगा| बिल्डिंग की लिफ्ट के पास पहुँच कर उसने देखा कि लिफ्ट तो खराब पड़ी है| वो हैरान होकर बोला,
पार्थ - ये लिफ्ट कैसे ख़राब हो गयी? थोड़ी देर पहले तो सही से काम कर रही थी| अभी पांच फ्लोर सीढ़ियां चढ़नी पड़ेंगी। ओह नो!
पार्थ निराश होकर सीढ़ियां चढ़ने लगा। सीढियों में अँधेरा होने की वजह से वो संभल-संभलकर चढ़ रहा था| चार माले चढ़ने के बाद वो बुरी तरह थक गया| जैसे ही वो पांचवे माले की तरफ बढ़ा कि तभी दोबारा उसे अपने आसपास वो साया नज़र आने लगा। पार्थ कुछ सोच पाता उस से पहले ही उस साए ने पार्थ को ज़ोर से धक्का दे दिया| पार्थ पन्द्र-बीस सीढियों से नीचे जा गिरा|
उसके हाथ-पैर में इतनी चोटें आई थीं कि वह ठीक से उठ भी नहीं पा रहा था| किसी तरह पार्थ ने अपने दोनों हाथ ज़मीन पर रखे और जैसे-तैसे हिम्मत कर के खड़ा हुआ, लेकिन जैसे ही वह खड़ा हुआ वह एक अलग ही दुनिया में पहुँच गया था| पार्थ इस वक्त अपनी बिल्डिंग में नहीं था बल्कि किसी गाँव जैसी दिखने वाली जगह में था| जहां तेज़ बारिश हो रही थी और घुटनों तक पानी भर गया था| आसपास के कच्चे मकान टूटे हुए थे और लोग अपनी जान बचाने के लिए यहां-वहां भाग रहे थे|
पार्थ को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह अचानक से गाँव में कैसे आ गया? तेज़ बारिश की वजह से वो पूरा भीग गया था| उसने आज से पहले इतनी तेज़ बारिश कभी नहीं देखी थी, ऊपर से बारिश की बूंदें उसके चेहरे पर थप्पड़ की तरह पड़ रहीं थीं| पानी का लेवल धीरे धीरे बढ़ रहा था| पार्थ यहां-वहां देख कर माहौल को समझ रहा था कि तभी उसे एक आदमी की आवाज़ सुनाई पड़ी, “ए मूर्ख बालक, तुझे डूबना है क्या? हमारे साथ चल, नहीं तो मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा|”
पार्थ के पास उस आदमी की बात मानने के अलावा और कोई ऑप्शन नहीं था| वह उस आदमी के साथ चल पड़ा| वह आदमी पूरे रास्ते उसे बताता रहा कि गाँव में बाढ़ इंद्र देव का अपमान करने से आई है| उसकी भाषा सुन कर पार्थ और भी ज़्यादा कंफ्यूज हो गया की आज के टाइम में भी कोई इतनी शुद्ध हिंदी कैसे बोल सकता है? उस आदमी ने पार्थ से उसके घर और गाँव के बारे में भी पूछा क्योंकि उसने पार्थ को पहली बार देखा था| पार्थ ने कोई जवाब नहीं दिया और उसके साथ बस चुपचाप चलता रहा| उन दोनों को कमर तक भरे पानी में चलने में बहुत परेशानी हो रही थी|दोनों किसी तरह एक पहाड़ के पास पहुंचे जहां पहले से गाँव के सभी लोग खड़े थे| ये इलाका गाँव में सब से ऊँचा था, इस वजह से यहां पानी का भराव कम था|
पार्थ ने देखा सभी गाँव वाले किसी को घेर कर खड़े थे| वह लोगों के बीच में से भीड़ में घुसने की कोशिश कर रहा था| उसने देखा कि सब लोग एक छोटे से बच्चे को घेर कर खड़े हैं| कुछ लोग उस पर चिल्ला रहे हैं की उसकी वजह से गाँव का ये हाल है| उन लोगों की बातों से पार्थ को शक होने लगा कि शायद वह अभी मथुरा में है और उसके सामने गोवर्धन पर्वत है। वह बहुत हैरान था और अपनी हैरानी में ही वह उस बच्चे को गौर से देखने लगा, जिसे सब ने घेरा हुआ था। उस बच्चे के हाथ में बांसुरी थी और सर पर मोर पंख| पार्थ को एहसास हुआ कि इस बच्चे की शक्ल बिलकुल उसके सपने में आये कृष्ण से मिलती जुलती है, सिर्फ उम्र का फर्क है|
पार्थ यकीन ही नहीं कर पा रहा था कि वह कृष्ण के समय में आ गया था| पार्थ और कुछ समझ पाता उस से पहले वो बच्चा पार्थ को देख कर मुस्कुराया और गोवर्धन पर्वत की ओर बढ़ा| एक आदमी ने उस बच्चे को आवाज़ लगायी, “कन्हैया, कहां जा रहे हो? हम सब के साथ रहो वरना गुम हो जाओगे|”
उस आदमी की बात सुन कर पार्थ को यकीन हो गया कि वह लड़का और कोई नहीं बल्कि कृष्ण ही हैं| कृष्ण ने एक बार फिर से पार्थ को दर्शन दिए थे| हालाँकि इस बार पार्थ नींद में नहीं था। उसके मन में बहुत बड़ा सवाल था कि वह कृष्ण के पास कैसे पहुँच गया, वो भी कृष्ण के बचपन में? कृष्ण ने मुड कर देखा और उस आदमी को मुस्कुराते हुए जवाब दिया “ये बारिश शीघ्र ही रुकने नहीं वाली है काका। इंद्र को शांत होने में थोड़ा सा ही और समय लगेगा| मेरे पास एक उपाय है, जिस से गाँव वालों को इस बारिश से मुक्ति मिलेगी।”
कृष्ण पर्वत की ओर बढ़े| पार्थ गौर से कृष्ण को देख रहा था। उसने पहले कृष्ण की कहानियाँ पढ़ीं थीं, इसलिए वो जानता था कि कृष्ण अब गोवर्धन पर्वत उठाएंगे और देखते ही देखते ऐसा ही हुआ, कृष्ण ने अपनी छोटी ऊँगली पर पूरा पर्वत उठा लिया| पार्थ हाथ जोड़ कर कृष्ण को ऐसा करते हुए देख रहा था| उसकी आँखों में ख़ुशी थी। उसे अभी भी अपनी किस्मत पर यकीन नहीं हो रहा था। कृष्ण की नामुमकिन को मुमकिन करने वाली कहानी आज उसने अपनी आँखों से देख ली| जब गाँव वालों की नज़र कृष्ण पर गयी तो सभी दौड़ कर उसके पास गए| वो सब भी हैरान थे|कृष्ण की मदद करने के लिए सब ने अपनी-अपनी लाठियां पर्वत के नीचे टीका दीं। पार्थ भी कृष्ण के पास जाकर खड़ा हो गया| कृष्ण पार्थ को मुस्कुराते हुए देखने लगे और पूछने लगे, “क्या हुआ पार्थ? बड़े ही आश्चर्यचकित दिख रहे हो?”
पार्थ – मैं बहुत लकी हूँ जो आप के एक बार फिर से दर्शन कर पा रहा हूँ| मुझे तो यकीन नहीं हो रहा है कि मैं आप के साथ खड़ा हूँ और ये कोई सपना भी नहीं है|
पार्थ ने हाथ जोड़ कर कहा| आसपास खड़े गाँव वालों का ध्यान अपनी-अपनी लकड़ियों पर था|
उन सब को डर था कि कहीं लकड़ियाँ टूट गयी तो पहाड़ नीचे गिर जायेगा और वे सब मारे जायेंगे|कृष्ण ने पार्थ से आगे कहा,
“तुम तो मेरे साथ खड़े प्रसन्न दिख रहे हो, लेकिन ये मथुरावासी मुझ से नाराज़ हैं| तुमने देखा किस तरह सब लोग मुझे बुरा भला कह रहे थे, परन्तु ये तो जीवन का नियम है पार्थ|
कुछ लोग आप से भरपूर प्रेम करेंगे तो कुछ लोग आप की निंदा भी करेंगे| तुम ऐसी परिस्थिति में क्या करोगे पार्थ?”
पार्थ सोच में पड़ा गया| उसने सोचा नहीं था की कृष्ण अचानक से उस से सवाल करेंगे| उसने सोच कर जवाब दिया|
पार्थ - जो लोग मुझे बुरा भला कहते हैं, मैं उन लोगों से दूर रहना पसंद करूँगा| उनकी बुरी बातें सुन कर मेरी मेंटल हेल्थ ख़राब होगी|
कृष्ण ने उससे कहा, “सत्य है पार्थ, परन्तु कितने लोगों से दूर भागोगे तुम? इस जीवन में तुम्हें प्यार करने वाले कम और बुरा भला कहने वाले अधिक मिलेंगे|
मुझे ही देख लो, भले ही सभी गाँव वालों के मन में थोड़ी देर पहले तक मेरे लिए द्वेष की भावना थी, किन्तु मेरा कर्तव्य है कि मैं इन सब की रक्षा करूँ| आखिरकार ये सब लोग हैं तो मेरे ही गाँव वाले, मेरे ही लोग|”
पार्थ को कृष्ण की बात सही लगी| भले ही कोई हमसे नफरत करे लेकिन जरूरत पड़ने पर हमें उनकी भी हेल्प करनी चाहिए| तभी कृष्ण ने पार्थ को अपनी बांसुरी दी।
पहले तो पार्थ शॉक्ड था, लेकिन फिर उसने जैसे ही बाँसुरी अपने हाथ में पकड़ी, वह एकदम से अपने कमरे में आ गया|
पार्थ चौंक कर अपने आसपास देखने लगा| मथुरा का गाँव, कृष्ण, बारिश और गोवर्धन पर्वत सब कुछ गायब हो गया था|
पार्थ सोच में पड़ गया कि अभी जो उसके साथ हुआ वो सिर्फ एक सपना था या वो सच में मथुरा में था|
पार्थ पानी पीने के लिए किचन में गया तभी उसकी नज़र टेबल पर गयी| टेबल पर एक बांसुरी रखी थी| ये वही बांसुरी थी जो थोड़ी देर पहले कृष्ण ने उसे दी थी।
क्या पार्थ कोई सपना देख रहा था या सच में वह टाइम ट्रेवल कर के कृष्ण से मिलकर आया था?
पार्थ के साथ ये अजीबोगरीब घटनाएँ आखिर हो क्यों रहीं हैं?
आगे क्या होगा, जानेंगे अगले चैप्टर में!
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