ऑडियो जैसे ही खत्म हुआ, आरव जैसे बुत बन गया। उसकी आँखें एकटक मोबाइल स्क्रीन को घूरती रहीं, मगर अब वहाँ कुछ नहीं था—ना आवाज़, ना हरकत, बस एक नज़र न लगने वाला सन्नाटा। उस आखिरी आवाज़ ने जैसे उसकी रग-रग को हिला दिया था। उसके भीतर कुछ दरक गया था, बहुत भीतर तक, जहाँ शब्द भी पहुँचने से डरते हैं।
उसकी साँसे काबू से बाहर हो गई थीं। उसने कांपते हुए हाथों से फोन मेज़ पर पटका और दोनों कानों को दोनों हथेलियों से कस कर दबा लिया, जैसे दर्द को वहीं रोक लेना चाहता हो। मगर वो दर्द… वो तो जैसे उस की नस-नस में दौड़ने लगा था।
"ऐसी कौन सी सच्चाई है, जो मुझसे छुपाई गई है?"—उसके अंदर एक तूफान मचलने लगा।
“ताऊ जी, माँ, चाचू... आप सब ने मुझ से क्या छुपाया है?”
हर सवाल, एक नई सुई की तरह उसके दिमाग में चुभने लगा। उसका सिर फटने लगा था। वो लड़खड़ाता हुआ कमरे में इधर-उधर घूमने लगा, मानो रास्ता ढूंढ रहा हो उस सच्चाई तक पहुंचने का, जो उस से अब तक ओझल रही थी।
उसकी आंखों में आंसू भर आए—बिना आवाज़, बिना किसी चेतावनी के। वो ठहरे नहीं, बस बहते चले गए, जैसे बरसों से जमा दर्द अब बहकर बाहर आ रहा हो। उसकी पलकें इतनी भारी हो गई थीं कि अब उन्हें खोले रहना असंभव सा लगने लगा था। उस ने आँखें कस कर मींच लीं, जैसे यक़ीन न हो रहा हो उन सब बातों पर जो उसने अभी सुनी।
वो एक बेचैन आत्मा की तरह टकराता रहा—दीवारों से, यादों से, सच्चाई से। तभी अचानक उसका पैर टेबल से टकराया। हल्की सी ठोकर नहीं थी वो— जैसे हकीकत ने उसे झकझोर कर ज़मीन पर ला पटका हो।
टेबल पर रखा लैम्प ज़ोर की आवाज़ के साथ फर्श पर गिरा और टूट कर बिखर गया। कांच के टुकड़े चारों ओर फैल गए, और उस टूटने की गूंज पूरे घर में एक दर्दभरी चीख बनकर फैल गई।
उस ने हड़बड़ाकर पीछे देखा, जैसे किसी अनजानी चीज़ से डर गया हो, मगर कमरे में कोई भी नहीं था—सिवाय उस सच के, जो अब किसी दानव की तरह उसे घूर रहा था।
आरव वहीं ज़मीन पर बैठ गया। कांपते हाथों से अपना सिर थामे वो अब फूट-फूट कर रोने लगा। उसके अंदर जो किले गर्व और मज़बूती से खड़े थे, आज एक ऑडियो की आवाज़ से ढह चुके थे।
अब न उसके पास कोई सवाल बचा था, न जवाब… बस एक खालीपन था, और उस खालीपन की चुभन, जो उस की रूह को भी घायल कर रही थी।
पूरे घर में गहरी रात का सन्नाटा पसरा हुआ था। हर कोई अपने-अपने कमरों में नींद के आगोश में था। कोई नहीं जानता था कि एक कमरा ऐसा भी है जहाँ नींद नहीं, बल्कि एक आत्मा चीख रही है। एक दिल है, जो चुपचाप बिखर रहा है।
आरव ज़मीन पर पड़े-पड़े अब अपने सिर में हो रहे बर्दाश्त से बाहर दर्द में ज़ोर-ज़ोर से कराहने लगा था। उसका शरीर दर्द से काँप रहा था, और उसकी रगों में दौड़ता तनाव उसे अन्दर से चीर रहा था। हर आह, हर सिसकी उसके टूटते आत्मबल की गवाही दे रही थी।
तभी… घर का मुख्य द्वार खुला।
देर रात, हल्की-हल्की बारिश में भीगती, थकी हुई चाल में, सुहानी और मीरा घर में दाख़िल हुईं। वे दोनों बातों में उलझी थीं, मगर जैसे ही उन्होंने भीतर आते ही टूटते हुए टेबल लैम्प की आवाज़ की गूँज और आरव की कराहने की धुंधली चीखें सुनीं—दोनों एक क्षण को ठिठक गईं।
सुहानी की आँखें चौड़ी हो गईं, मीरा की सांसें तेज़ चलने लगीं। उन्होंने एक-दूसरे की तरफ देखा—परेशान, डरे हुए, और फिर एक साथ लगभग चिल्लाते हुए बोलीं, “आरव!”
पैर जैसे ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे, दोनों भागती हुई उसके कमरे की ओर लपकीं। सुहानी का दिल धक-धक कर रहा था। ‘कुछ गलत हो गया है,’ ये एहसास उसके दिल को जकड़ने लगा था।
कमरे का दरवाज़ा बंद था, मगर लॉक नहीं था—यह देखकर सुहानी ने ईश्वर का शुक्र मनाया। अगले ही पल, बिना कोई समय गंवाए, उसने दरवाज़ा एक झटके में खोल दिया।
जो दृश्य उनके सामने था, उसने उनके पैरों तले ज़मीन खिसका दी थी।
आरव ज़मीन पर लेटा था, खुद में सिमटा हुआ। उसका शरीर काँप रहा था, घुटने उसके सीने से लगे हुए थे, और दोनों हाथों से वो अपना सिर थामे हुए था जैसे उसका दिमाग़ अब और कुछ सहन नहीं कर पा रहा हो। वो बुरी तरह से कराह रहा था, जैसे कोई असहनीय पीड़ा उसे अन्दर से जला रही हो।
उसकी आँखें बंद थीं, चेहरा पसीने और आंसुओं से भीगा हुआ था, बाल बिखरे हुए, और उसकी हर साँस में एक टूटा हुआ सच छुपा था।
"आरव!" सुहानी ने आरव की हालत देखते हुए कहा। घुटने के बल बैठते हुए उसकी ओर हाथ बढ़ाया।
मीरा भी उसके पास पहुँच गई, उसकी हालत देखकर उसके चेहरे से रंग उड़ गया।
"क्या हुआ इसे?" मीरा के गले से मुश्किल से आवाज़ निकली।
सुहानी के हाथ काँपने लगे थे, उसका नाम पुकारने के बाद भी वो अब भी अपनी ही दुनिया में था—दर्द की एक ऐसी गहराई में डूबा, जहाँ कोई और उसकी पुकार नहीं सुन पा रहा था। उस रात पहली बार, सुहानी ने आरव को इतना टूटा हुआ देखा था।
“आरव…” सुहानी की आवाज़ काँप रही थी। उसके चेहरे पर घबराहट और बेचैनी साफ झलक रही थी। उसने बिना एक पल गंवाए अपना पर्स ज़मीन पर फेंका और झटपट आरव की ओर लपकी। घुटनों के बल झुकते हुए वो उसके बिल्कुल पास पहुँच गई।
“Shit!” उसके मुँह से खुद-ब-खुद निकल गया। आरव की हालत ने उसे अंदर तक झकझोर दिया था।
आरव अभी भी अपने उस दर्द की गहराइयों में डूबा हुआ, बेतहाशा कराह रहा था। उसका चेहरा सर्द और पीला पड़ गया था। उसके माथे से पसीने की बूंदें बह रही थीं और आँखें बुरी तरह भीगी हुई थीं।
सुहानी ने एक पल के लिए अपने डर को काबू किया, फिर धीरे से उसका सिर उठाया और अपनी गोद में रख लिया। उसने प्यार से उसके बालों में हाथ फेरा, जैसे उसे सुकून देना चाहती हो। आरव के होठ थरथरा रहे थे, और उसकी साँसें असमान हो चुकी थीं।
उधर, मीरा कमरे के दरवाज़े पर जड़ बनी खड़ी थी। उसकी आँखें फटी हुई थीं और वह हिल भी नहीं पा रही थी। जैसे उसकी सोचने-समझने की शक्ति ने काम करना बंद कर दिया हो।
“मीरा, आरव की दवाइयाँ कहाँ हैं?” सुहानी ने उसे पुकारा, पहले नरमी से, फिर घबराहट भरे तीखे स्वर में दोहराया, “मीरा!”
उस तेज़ आवाज़ से मीरा चौंक गई, जैसे किसी गहरी नींद से अचानक जग पड़ी हो। उसका चेहरा डर और शर्म से लाल हो गया।
“हाँ… हाँ… दवाइयाँ… मैं देखती हूँ,” वो हड़बड़ाते हुए बेड के बगल वाली साइड टेबल की ओर भागी। उसके हाथ काँप रहे थे, लेकिन उसने जैसे-तैसे दराज खोला और भीतर से एक सफेद रंग का दवाइयों का डिब्बा निकाला। जल्दी से दवाइयों का डिब्बा लेकर वह सुहानी के पास आई और उसके साथ एक पानी का भरा हुआ गिलास भी उठा लाई।
“ये लो… ये रही दवा…” मीरा ने गले से आवाज़ खींचते हुए कहा।
आरव अब भी पूरी तरह होश में नहीं था, मगर सुहानी की आवाज़ और स्पर्श की गर्माहट धीरे-धीरे उसे उस गहरे अंधेरे से खींचने लगी, जिस में वह डूबा हुआ था। उस पल में, कमरे में केवल तीन धड़कनें थीं—एक टूटती हुई, एक घबराई हुई और एक जो अब भी उम्मीद से लड़ रही थी।
सुहानी ने हाथ में पकड़े डब्बे को तेज़ी से खोलकर उस में लिखे निर्देश पढ़े। उसकी उंगलियाँ थोड़ी काँप रही थीं, मगर उसके चेहरे पर अब एक दृढ़ता थी—उसे आरव को ठीक करना ही था।
उस ने ध्यान से तीन दवाइयाँ चुनीं, उन्हें हथेली पर रखा, और फिर नर्मी से आरव का सिर अपनी गोद से थोड़ा ऊपर उठाया। आरव की आँखें अभी भी बंद थीं, पर वो सुहानी के स्पर्श को महसूस कर पा रहा था—एक ऐसा स्पर्श, जिसमें चिंता, अपनापन और एक अनकही मोहब्बत थी।
“आरव… ये दवा ले लो, प्लीज़…” सुहानी ने धीरे से फुसफुसाया।
आरव की थरथराती साँसों के बीच उस ने मुँह खोला, और सुहानी ने बड़ी नर्मी से एक-एक कर दवाइयाँ उसके मुँह में रखीं। मीरा ने तुरंत पानी का ग्लास आगे बढ़ाया। सुहानी ने आरव को सहारा देते हुए उसके होठों तक पानी पहुँचाया।
“पानी पी लो… कुछ नहीं होगा… मैं यहीं हूँ…” उसकी आवाज़ में एक ममता भरी सख्ती थी।
आरव ने बेमन से ही सही, मगर पानी पीकर दवाइयाँ निगल लीं। जैसे उसके मन ने सुहानी की उपस्थिति पर भरोसा किया हो। फिर सुहानी ने मीरा को गिलास थमाया और आरव का सिर धीरे से वापस अपनी गोद में रख दिया। उसके हाथ अब भी आरव के बालों में घूम रहे थे—धीमे, सधे हुए, जैसे हर कराहट को उसकी उंगलियाँ चुपचाप सोख रही हों।
कमरे में अब सन्नाटा था। दर्द की जगह एक अजीब सी शांति ने ले ली थी। मीरा चुपचाप एक कोने में खड़ी थी, उसकी आँखों में भी बेचैनी थी, मगर सुहानी के हाथों की ममता देख कर वो कुछ कह नहीं पाई।
कुछ ही मिनटों में आरव की साँसें थोड़ी सामान्य हुईं। उसकी आँखें अब भी बंद थीं, मगर उसकी भौंहों पर फैला तनाव धीरे-धीरे ढलने लगा। और फिर, थक कर, दर्द से टूटा हुआ वो सुहानी की गोद में ही सो गया—जैसे वो वही एकमात्र जगह थी जहाँ उसे सुकून मिल सकता था।
मगर सुहानी ने उसका सिर सहलाना बंद नहीं किया। उसके हाथ उसी लय में चलते रहे—जैसे वो चाहती हो कि उस रात आरव की नींद टूटे ही नहीं, और उस का दुःख कभी फिर लौट कर ना आए।
उस पल में, एक टूटा हुआ रिश्ता थोड़ा सा जुड़ गया था—मौन में, स्पर्श में, और उस गोद में, जिस में कभी किसी ने शर्तों के बिना सिर रखा था।
आरव की साँसें अब कुछ शांत हो चुकी थीं। उसकी आँखें बंद थीं और चेहरा पहले से कुछ सुकून में दिख रहा था। कमरे में अब कोई कराह नहीं थी, ना ही कोई हड़बड़ी। बस हल्की सी टेबल लैंप की रोशनी, बिखरे हुए काँच के टुकड़े, और बीच कमरे में बैठी दो औरतें — जिन्हें आरव की चिंता थी।
मीरा ने राहत की साँस ली और खुद को धीरे से बिस्तर के एक कोने पर बैठ गई। मगर जैसे ही उसकी निगाहें सुहानी पर पड़ीं, उसकी साँस एक बार फिर थम सी गई।
सुहानी अब भी आरव का सिर अपनी गोद में लिए बैठी थी। उसके हाथ लगातार आरव के बालों को सेहला रहे थे, बिल्कुल उसी लय में — मगर अब उसके कंधे धीरे-धीरे काँप रहे थे।
मीरा ने गौर किया—वो काँपना किसी थकान का नहीं था, वो उन आँसुओं का बोझ था जो अब सुहानी रोक नहीं पा रही थी। उसकी आँखों से बहते आँसू उसके गालों से होते हुए आरव के गालों पर गिर रहे थे, मगर सुहानी ने अपने हाथों की हरकत नहीं रोकी। वो रो रही थी, मगर चुपचाप। जैसे एक सिसकी भी अगर बाहर निकली, तो आरव की नींद टूट जाएगी। जैसे उसकी परवाह उसे अब अपने दर्द से भी ज़्यादा थी।
मीरा का दिल एक पल को कस गया। वो बिना कुछ कहे उठी और धीरे से सुहानी के पास आकर बैठ गई। उस के काँपते कंधों पर अपने हाथ रख दिए। पहले हल्के से, फिर थोड़ी मजबूती से, जैसे कह रही हो—"तुम अकेली नहीं हो।"
सुहानी ने मीरा की ओर नहीं देखा। शायद देखती तो और टूट जाती। उसके आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे, मगर उसका चेहरा शांत था—एक ऐसी शांति, जिसमें हर भावना दब गई थी। उस रात, आरव की नींद के साथ दो और दिल भी थक कर बैठ गए थे—एक अपनी गलती के बोझ से और एक उस दर्द से, जिसे उस ने कभी चाहा ही नहीं था।
कमरे में पसरा तनाव अब भी चुपचाप चीख़ रहा था। मगर अब ये लड़ाई सिर्फ आरव की नहीं थी। सुहानी जानती थी—अब उसे उस सच्चाई तक पहुँच कर आरव की टूटी रूह को समेटना होगा… चाहे इसके लिए उसे खुद अपनी हदें क्यों न पार करनी पड़े।
वो जो दर्द से कांप रहा था भीतर ही भीतर,
उसकी सांसों में घुल गई किसी अपने की परवाह।
कभी-कभी बिना बोले, बिना सवाल के,
सिर्फ साथ होना ही बन जाता है दवा।
आगे की कहानी जानने के लिए पढ़ते रहिये, रिश्तों का क़र्ज़।
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