सुहानी डरती नहीं थी, मगर आरव के इस व्यवहार से वो और उलझती जा रही थी…“आरव, प्लीज़ गाड़ी धीरे कीजिए, आप ठीक नहीं हैं। ये ठीक नहीं है!”
मगर आरव उसकी बात सुन ही नहीं रहा था। उसकी साँसें तेज़ हो गई थीं, हाथ स्टीयरिंग पर कस गए थे। आँखों के सामने धुंध छा रही थी। फिर अचानक उसने गाड़ी धीमी की और एक कैफे के बाहर रोक दी। वो बाहर निकला, सिर दोनों हाथों से पकड़े हुए खड़ा हो गया। दर्द से उसकी हालत फिर से खराब होने लगी थी।
सुहानी तुरंत गाड़ी से उतरी और आरव की गाड़ी में रखी दवाइयां ढूंढने लगी। उसे आरव के बैग में दवाई मिल गई और साथ में पानी की बोतल भी। वो तुरंत उसके पास पहुँची।
“दवाई लीजिए। नहीं तो दर्द और बढ़ जाएगा,” उसने चिंतित होकर कहा।
“चली जाओ यहाँ से!” आरव ने हाथ से उसे पीछे हटाना चाहा, मगर दर्द की वजह से उसे दिख नहीं रहा था, और उसका हाथ सुहानी को धक्का दे गया।
सुहानी का सिर पास के एक खंभे से टकरा गया। उसकी आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया, मगर उसने कुछ नहीं कहा। वो बस थोड़ा लड़खड़ाई, फिर खुद को सम्भालते हुए वापस उसके पास गई।
“प्लीज़, दवाई लीजिए,” उसने फिर से कहा, इस बार और ज़्यादा स्नेह और दृढ़ता से।
आरव ने आखिरकार दवाई ले ली, बिना ये जाने कि उसने सुहानी को चोट पहुंचाई थी। सुहानी के सिर से खून बह रहा था, मगर उसने अपने बालों से उसे ढक लिया। कुछ देर बाद आरव थोड़ा बेहतर महसूस करने लगा। वो गाड़ी के सहारे खड़ा रहा, फिर जब कुछ और देर बीत गए, तो सुहानी ड्राइवर सीट पर जा बैठी।
“अब मैं चलाऊंगी,” उसने शांत मगर ठोस आवाज़ में कहा।
“नहीं, मैं ठीक हूँ,” आरव ने विरोध किया।
“आप बैठिए,” उसने दोबारा कहा।
आरव गुस्से से भरा था, मगर जानता था कि इस बहस का कोई फायदा नहीं। वह बगल वाली सीट पर बैठ गया। रास्ते में ही आरव की आँख लग गई थी। सुहानी ने गाड़ी ऑफिस के सामने पार्क कर दी। वो दो घंटे पहले ही पहुंच गए थे। मगर उसने आरव को नहीं जगाया।
गाड़ी में रखी फर्स्ट एड किट से उसने अपने सिर की चोट साफ़ की, उस पर छोटा सा bandage लगा लिया और एक पेनकिलर खा ली। फिर बालों से उसे छिपाने की कोशिश की।
उसके बाद उसने अपना लैपटॉप निकाला और काम में लग गई। मरियम ने दिन भर की मीटिंग्स और फाइल्स की अपडेट भेजी थी, जिनमें कुछ संदिग्ध ऑर्गन डोनर्स के नाम भी थे। सुहानी ध्यान से सब कुछ चेक करने लगी।
करीब डेढ़ घंटे बाद आरव की नींद खुली। उसने खुद को गाड़ी में पाया और चौंक कर इधर-उधर देखने लगा। फिर उसकी नजर ड्राइवर सीट पर बैठी सुहानी पर पड़ी, जो गहरे ध्यान में लैपटॉप पर काम कर रही थी। आरव कुछ पल बस उसे देखता ही रह गया। उसके चेहरे पर काम का तनाव था, मगर एक दृढ़ता भी थी। उसके बालों से झाँकता हल्का सा bandage उसकी नजरों में नहीं आया।
तभी एक नोटिफिकेशन की आवाज़ ने सन्नाटा तोड़ दिया। सुहानी ने जैसे ही सिर उठाया, उसकी नज़र आरव से टकराई।
“शिट!” वह चौंकी, क्योंकि उसे लगा था कि आरव अब तक सो रहा होगा।
आरव उसकी आँखों में देखने लगा… और उसे समझ में नहीं आया कि इतनी उलझनों के बीच, ये लड़की इतनी मजबूती से कैसे खड़ी है।
आरव की आँखें जब सीट पर बैठी सुहानी से टकराईं, तो एक पल को जैसे वक़्त थम गया। रेडियो पर बजते गानों ने गाड़ी में बसी खामोशी में एक धीमा सा सरसराहट घोल दिया, और उस सरसराहट में आरव की नज़रें सुहानी पर ठहर गईं।
सुहानी की आँखों में उस पल घबराहट साफ़ झलक रही थी—वो सोच रही थी, कि आरव कुछ देर और सोयेगा, और तब तक वो ये काम निपटा लेगी। और उसके बाद वो राठौर के illegal कामों के ऊपर रीसर्च कर रही थी, जो अभी वो आरव को नहीं बताना चाहती थी, क्योंकि उस पर उस बात का बुरा असर पड़ता, इसीलिए उसकी आँखों में जैसे कोई राज़ छुपा सा मालूम होता था। उसके होंठ थरथरा रहे थे, और चेहरे पर ऐसा भाव था मानो उसकी चोरी पकड़ी गई हो। हाथ में पकड़ी एक फ़ाइल को वह तेजी से पीठ के पीछे छुपाने की नाकाम कोशिश कर रही थी।
आरव कुछ क्षणों के लिए वहां ठिठक गया। उसकी तेज़ साँसे रुक गई, आँखें ठंडी पड़ गईं और वो बग़ैर पलक झपकाए सुहानी को देखता रहा। उस पल सुहानी की मासूमियत, उसकी उलझन, और आँखों में तैरता डर… सब कुछ आरव को चुभने लगा।
पर फिर, उस हल्के से एहसास को उसने झटक दिया। जैसे उसने दिल में उठते उस कोमल भाव को कुचल कर, फिर से वही सख्त और ताना मारने वाला नकाब ओढ़ लिया हो। वो धीरे-धीरे अपनी सीट पर सीधा होकर बैठ गया, और होंठों पर एक तीखा व्यंग्य लिए बोला, “हमारे खिलाफ कोई साजिश रच रही हो?”
सुहानी ने चौंक कर उसकी ओर देखा। उसकी आँखों में हैरानी थी, और कुछ क्षण के लिए वो समझ ही नहीं पाई कि आरव का मतलब क्या था।
"What?" उसने भ्रमित होकर पूछा, उसका गला थोड़ा सूख गया था, और आवाज़ में घबराहट साफ़ झलक रही थी।
आरव ने अपनी आँखें उसके चेहरे पर गड़ा दीं, मानो वो उसकी आत्मा को पढ़ने की कोशिश कर रहा हो। "डर तो ऐसे गयी तुम," उसने थोड़ा और पास आकर कहा, “जैसे कुछ ऐसा करते हुए तुम्हें पकड़ लिया हो मैंने… जो मुझ से छुपाने की कोशिश कर रही थी तुम।”
उसके लहजे में संदेह था, ताना था, और कहीं न कहीं—एक अधूरा यकीन भी। सुहानी ने एक पल के लिए कुछ कहना चाहा, पर शब्द जैसे गले में अटक गए। उसके हाथ अब भी पीछे थे, जहाँ वो फ़ाइल छुपी हुई थी।
आरव की नज़रें उसकी हर हरकत पर थीं। और सुहानी… वो खुद से लड़ रही थी—क्या कहूं, क्या छुपाऊं, और क्या आरव से अब कुछ भी छुपाना मुमकिन था?
सुहानी ने कुछ देर तक आरव की आँखों में देखा—गहरी, सख़्त और सवालों से भरी उन आँखों में। फिर उसने धीमे से अपनी भौहें उठाईं, जैसे वो खुद से पूछ रही हो—"क्या ये इंसान कभी भी मुझ पर यकीन करेगा?"
उसने एक लंबी और थकी हुई साँस ली, मानो उसके अंदर जमा हो चुकी सारी निराशा अब बाहर निकल रही हो। उसकी आँखों में अब नाराज़गी नहीं थी, बल्कि एक तरह की हारी हुई समझ थी—कि आरव को शायद कभी समझाया नहीं जा सकता।
“आपको जैसा समझना है, वैसा समझिए,” उसके स्वर शांत थे, लेकिन उस में एक कटाक्ष छुपी थी। वो बहस नहीं करना चाहती थी—अब और नहीं।
फिर उसने हल्के से गर्दन झुकाई और खुद को संयमित करते हुए बोली, “आप अगर अब उठ ही गए हैं, तो मैं अब चलती हूँ। अब आप अपना ध्यान खुद रख सकते हैं।”
उसकी आवाज़ में अब कोई तल्ख़ी नहीं थी, बल्कि एक साधी हुई जिम्मेदारी थी—जैसे वो अब भी, सब कुछ जान कर भी, उसकी फिक्र कर रही हो।
“और प्लीज़, कुछ भी ऐसा मत करिएगा, जिसे करने से डॉक्टर ने आपको मना किया है। ये बार-बार का सिरदर्द... ये आपके लिए ठीक नहीं है।”
वो पलभर के लिए रुकी, उसकी आँखें आरव के चेहरे पर ठहरीं, जहाँ नज़रें अब भी सख़्त थीं, पर शायद कहीं अंदर कुछ पिघल रहा था।
“तो प्लीज़... ध्यान रखिएगा अपना।”
उसने आखिरी शब्द थोड़े धीमे से कहे, मानो दिल से निकल रहे हों। इसके बाद वो मुड़ी और गाड़ी का दरवाज़ा खोलने लगी। उसका एक हाँथ अभी भी पीछे फ़ाइल को छुपाये हुए था, उसने तुरंत उसे आगे कर के उस फ़ाइल को आरव की नज़र से बचाते हुए अपने बैग में रखा।
और पीछे बैठा आरव... वो सिर्फ उसे दरवाज़ा खोलते हुए देखता रहा—चुप, स्थिर और कहीं गहराई में थोड़ा बेचैन।
आरव ने अपनी आँखें थोड़ी सिकोड़ते हुए, एक कड़वी मुस्कान के साथ कहा, “तो तुम कह रही हो कि तुम मेरे लिए यहाँ इतनी देर तक रुकी हुई थी?”
उसकी आवाज़ में अविश्वास की चुभन थी। फिर वो अपनी सीट पर से ही सुहानी की ओर और झुका, अब वो सुहानी के बेहद करीब था। उसकी आँखें सीधी सुहानी की आँखों में झाँक रही थीं, जैसे सच खींच कर निकाल लेना चाहता हो।
“कम से कम खुद से तो इतनी सफाई से झूठ मत ही बोलो न, सुहानी।”
उसके शब्द धीरे थे, मगर उन में जहर घुला हुआ था। फिर उसने थोड़ा और झुककर, ठंडी और तीखी आवाज़ में फुसफुसाया, “क्योंकि मैं तुम्हारे इस झूठे प्यार के झाँसे में नहीं पड़ने वाला।”
सुहानी कुछ पलों तक स्थिर बैठी रही। उसके चेहरे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं थी, मगर उसकी आँखों में एक गहरा दर्द और थकान साफ झलक रहा था। वो कुछ कहना चाहती थी—बहुत कुछ….पर उस ने खुद को रोक लिया। उसने बस एक गहरी साँस ली, जैसे अपने भीतर उमड़ते तूफ़ान को क़ैद कर लिया हो। उसकी निगाहें ज़मीन पर टिक गईं, और होंठ सख्ती से आपस में बंद हो गए।
वो जानती थी, कि आरव के शब्दों का जवाब देना इस वक़्त सिर्फ आग में घी डालने जैसा होगा। उसने चुप्पी को अपना ढाल बना लिया। और गाड़ी से बाहर निकल गई। लेकिन आरव अब उस चुप्पी से थक चुका था, वो अब और बर्दाश्त नहीं कर पा रहा था कि सामने खड़ी ये लड़की उसकी बातों का कोई जवाब न दे। गुस्से में, वो झटके से गाड़ी से उतरा—तेज़ी से उसके पास आया और एक झटके में उसके सामने खड़ा हो गया, बिलकुल ठीक उसके रास्ते में।
“चुप क्यों हो?” उसकी आवाज़ थोड़ी ऊँची हो चुकी थी।
“अब जब तुम्हें कोई जवाब नहीं सूझ रहा, तो बस खड़ी रहोगी यूँ ही?”
सुहानी की साँसें अब तेज़ हो चुकी थीं। वो उसे देख रही थी—उसके चेहरे पर गुस्सा, आँखों में ज्वाला, और दिल में कहीं न कहीं छुपा हुआ डर।
मगर उसने अब भी खुद को संभाले रखा था। उसकी आवाज़ अब भी नहीं निकली, लेकिन उसकी आँखों में जवाब था—चोट, दर्द और वो तड़प, जिसे आरव समझ नहीं पा रहा था।
“क्या हुआ? प्लान फेल हो गया तुम्हारा? झूठ पकड़ लिया क्या मैंने?”
आरव की आवाज़ में तंज था, मगर उसके लहजे में एक अजीब सी बेचैनी छुपी हुई थी। वो धीरे-धीरे सुहानी के इर्द-गिर्द चक्कर काटने लगा, जैसे शिकारी अपने शिकार की कमज़ोरी तलाश रहा हो। उसकी आँखों में एक अजीब सी तीव्रता थी, जैसे हर हाल में सुहानी को उकसाना चाहता हो, उसे तोड़ देना चाहता हो।
“बड़ी मासूम बनती हो तुम,” उस ने आगे कहा, “मगर अब उस मासूमियत की परतें उतरने लगी हैं। अब हर दिन कोई न कोई नया राज़ खुलता है, और तुम हर बार पकड़ी जाती हो।”
सुहानी ने एक बार फिर कुछ नहीं कहा। उसकी आँखें नम होने लगी थीं, लेकिन वो उन्हें झपका कर आंसुओं को रोकने की कोशिश कर रही थी। उसकी चुप्पी आरव को और भड़का रही थी।
“तुम्हारी ये खामोशी—ये दिखावा—मुझे बहलाने के लिए काफी नहीं है, सुहानी। मैं जानता हूँ तुम क्या चाहती हो। पहले मेरे घर में घुस आई, अब मेरी नज़रों में भी रहना चाहती हो? क्या सोच कर आई थी कि मैं आज की रात के बारे में सब भूल जाऊँगा? कि मैं मान लूँगा तुम ने दिल से मेरी देख भाल करने के लिए वो कदम उठाया था?”
वो बस बोलता चला गया… मगर जितनी तेजी से उसके शब्द बाहर निकल रहे थे, उतनी ही गहराई से एक और भावना अंदर उभर रही थी—अफसोस। क्योंकि सच्चाई ये थी कि आज जब उसने अपनी आँखें खोली थीं और उसे देखा था—अपने सीने पर सिर रखे, उसी के पास, उसी के बिस्तर पर सोती हुई, एक अजीब सी शांति ने उसे घेर लिया था। पहली बार उसे अपना कमरा “घर” जैसा लग रहा था। मगर फिर जैसे ही वो एहसास दिल के किसी कोने में पनपने लगा, उसने तुरंत उस पर संदेह की चादर ओढ़ा दी।
“कहीं ये सब भी तुम्हारा कोई खेल तो नहीं?”
“कहीं ये दिखावा सिर्फ मुझ से हमदर्दी बटोरने का कोई तरीका तो नहीं?”
और इन सवालों ने उसे फिर से वही बना दिया—सख़्त, ज़िद्दी, और ज़ख्मी आरव। वो जो अपने जज़्बातों से डरता था, और उस डर को गुस्से की शक्ल दे देता था।
वो सुहानी को इतना उकसाना चाहता था कि वो फूट पड़े—कुछ कहे, लड़े, चिल्लाए, ताकि आरव को कोई वजह मिल जाए… उसे दूर धकेलने की।क्योंकि वो खुद उससे पास आने वाली नज़दीकी से डर रहा था। मगर सुहानी अब भी शांत खड़ी थी। उसकी आँखों में तकलीफ़ की नमी थी, पर होंठ अब भी बंद थे। और यही चुप्पी आरव के भीतर उठते तूफान को और बेकाबू बना रही थी।
क्या आरव गुस्से में हर हद पार कर देगा?
सुहानी कब तक चुप्पी सादे रहेगी?
जानने के लिए पढ़ते रहिये, रिश्तों का क़र्ज़।
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