कई बार सच हमारे सामने होता है, पर हम उसे देख नहीं पाते, समझ नहीं पाते। यही हाल इस वक्त पार्थ का था| मंदिर में उस बूढ़े आदमी से मिलने के बाद पार्थ कुछ समझ नहीं पा रहा था। वह उस डायरी के बारे में कैसे जानता था? हर कोई, उस आदमी को पागल कह रहा था| पर क्या वो आदमी, अपने पागलपने में कुछ भी बोल गया? पार्थ के मन में कई सवाल थे| रागिनी पार्थ को खोया हुआ देख रही थी। 

रागिनी – कहाँ खो गए? रास्ते पर ध्यान दो वरना एक्सीडेंट हो जाएगा और मुझे अभी नहीं मरना है। अच्छा चलो, मैं घर चलकर तुम्हारे लिए कुछ बढ़िया सा खाने को बना दूँगी। 

दोनों जब घर लौटे तो रागिनी सीधा किचन में चली गयी| पार्थ पीछे से उसे खाना बनाने के लिए मना कर रहा था लेकिन रागिनी ने उसकी एक नहीं सुनी| पार्थ बचपन से ही, अपने मामा प्रकाश के साथ रहता था। कुछ साल पहले ही, उसके मामा काम की वजह से दिल्ली से बाहर शिफ्ट हो गए थे, लेकिन पार्थ ने दिल्ली नहीं छोड़ी और वह उनके फ्लैट में अकेले रहने लगा| प्रकाश के जाने के बाद, पार्थ काफ़ी अकेला पड़ गया था। इसलिए रागिनी अक्सर पार्थ के घर आकर उसके लिए खाना बना दिया करती थी लेकिन रागिनी के जाने के बाद पार्थ फिर अकेला पड़ जाता था। पार्थ को ये अकेलापन कहीं ना कहीं अन्दर से खाए जा रहा था| एक घंटे बाद रागिनी गरमा-गर्म खाना लेकर आई - पनीर और आलू की सब्ज़ी। सुनने में जितना अजीब है, खाने में स्वाद उतना ही बढ़िया होता है। रागिनी के हाथों में जादू है और वो अच्छे से जानती भी है की पार्थ को खुश करने के लिए क्या पकाना है। खाने की खुशबू पार्थ को डाइनिंग टेबल तक खींच लाई थी| कुर्सी पर बैठते ही उसने पहला बाईट लिया, जिसके बाद पार्थ के दिमाग के सारे बंद ताले खुल गए| वो खुद को रागिनी की तारीफ़ करने से रोक नहीं पाया|

पार्थ – कितना टेस्टी खाना बनाया है, रागिनी! वहां कुरुक्षेत्र में मैंने तुम्हारे हाथ का खाना सब से ज़्यादा मिस किया था। पता नहीं तुम हर बार इतना टेस्टी खाना कैसे बना लेती हो? तुम भी खाओ न, वरना तुम जानती हो मैं सबकुछ साफ कर दूंगा। 

पार्थ तारीफों के पुल बांधे जा रहा था, लेकिन रागिनी के चेहरे पर कोई खुशी नहीं थी। पार्थ ने देखा कि रागिनी अपने फ़ोन में खोई हुई थी| उसने एक और बार रागिनी को खाने के लिए कहा, लेकिन रागिनी ने मना कर दिया| पार्थ को डाउट हुआ कि कुछ तो गड़बड़ ज़रूर है, वर्ना रागिनी कभी भी इतना शांत नहीं बैठती| पार्थ ने उसकी आँखों के सामने दो बार चुटकी बजाई। 

पार्थ – क्या हुआ? तुम खा क्यों नहीं रही हो? हर बार तो बिना बोले ही मेरे साथ खाने बैठ जाती हो, तो फिर आज क्या हुआ? देखो कोई भी प्रॉब्लम की बात हो तो मुझे बताओ| हम दोनों मिल कर कोई ना कोई रास्ता ज़रूर निकाल लेंगे। 

रागिनी ने पार्थ की इस बात पर मोबाईल से ध्यान हटाकर उसकी तरफ देखा और बोली,

रागिनी – वो… पापा को बिज़नस में कुछ पैसों कि ज़रूरत थी… तो उन्होंने किसी से कुछ पैसे उधार लिए थे| उन्होंने वादा किया था कि दो महीने में ही सारे पैसे लौटा देंगे लेकिन पापा को बिज़नस में और भी ज़्यादा  लॉस हो गया और टाइम पर पैसे नहीं लौटा पाए। अब वो पैसों के लिए पापा के पीछे पड़े हैं| घर पर तीन बार अपने आदमी भेज चुके हैं| अभी पापा का ही मेसेज आया था। वो लोग आज भी घर आये थे| हमने पुलिस कंप्लेंट की थी लेकिन उन्होंने कहा कि एफ.आई.आर फाइल नहीं कर सकते क्योंकि गलती हमारी थी जो हमने पैसे उधार लिए और टाइम पे वापस नहीं किए। मैं जानती हूँ हमें समय पर पैसे लौटा देने चाहिए थे, लेकिन पार्थ इसका मतलब ये तो नहीं न कि कोई किसी को धमकी ही देने लगे और गुंडागर्दी पर ही उतर आए। 

पार्थ को रागिनी के लिए बहुत बुरा लग रहा था| वो समझ रहा था कि सिर्फ़ उसकी ज़िन्दगी में ही प्रोब्लेम्स नहीं हैं। रागिनी जो झेल रही थी वो खुद शायद कभी नहीं झेल पाता। अपनी आँखों के सामने अपने पिता को बेइज़्ज़त होते देखना किसी को भी अन्दर से तोड़ देता है| इतना सब कुछ होने के बावजूद भी, रागिनी पार्थ के लिए आई थी| पार्थ उसे हिम्मत देना चाहता था, लेकिन उस से पहले ही रागिनी खड़ी हुई और बोली

रागिनी – मुझे घर जाना होगा| पापा को मेरी ज़रूरत है। सॉरी पार्थ, मैंने सोचा था कि आज का पूरा दिन मैं तुम्हारे साथ बिताउंगी, लेकिन मेरा जाना ज़रूरी  है|

पार्थ – तुम्हें सॉरी कहने कि ज़रूरत नहीं है| इस वक्त तुम्हारी प्रायोरिटी तुम्हारे पापा होने चाहिए| अगर किसी भी वक्त मेरी ज़रूरत पड़े तो प्लीज़, मुझे बता देना, मैं आ जाऊंगा|

पार्थ भी रागिनी के साथ अपना दिन बिताना चाहता था, लेकिन उसका रागिनी को रोकना सही नहीं होता| रागिनी के जाने के बाद पार्थ ने पूरे घर की साफ़-सफ़ाई की| जब भी पार्थ किसी प्रोजेक्ट से घर लौटता था, रागिनी घर की सफ़ाई में उसकी मदद करती थी, लेकिन आज अकेले ही उसे सब कुछ करना पड़ रहा था| वो किचन की सफ़ाई कर रहा था तभी उसका फ़ोन बजने लगा। एक अननोन नंबर से मेसेज आया था| पार्थ ने मेसेज पढ़ा|

इतिहास के कई राज़ ऐसे हैं जो आज तक किसी को नहीं पता चला। उनमें से कृष्ण की जादुई डायरी का राज़ भी है। कृष्ण की ये जादुई डायरी, द्वापर युग से कुरुक्षेत्र में कहीं छुपी हुई थी। आखिरकार वो एक इंसान तक पहुँच ही गयी| वैसे मुझे काफ़ी समय से उस डायरी की तलाश थी और उसे पाने के लिए मैं किसी भी हद तक जा सकता हूँ|”

पार्थ मेसेज पढ़ कर दंग रह गया! अभी तक उसने किसी को डायरी के बारे में नहीं बताया था, लेकिन अब दो लोगों को इस बारे में पता चला गया था| एक, वह बूढ़ा आदमी जिसे सब लोग पागल कहते थे और अब, ये मेसेज भेजने वाला। पार्थ को उस बूढ़े आदमी से इतना डर नहीं लगा जितना डर, इस मेसेज  को पढ़कर लगा| मेसेज  में साफ़ लिखा हुआ था कि कोई है जो इस डायरी को पाना चाहता है और वो किसी भी हद तक जा सकता है| 

पार्थ किसी भी हाल में इस डायरी को खोना नहीं चाहता था| सब से पहले उसने डायरी को तिजोरी में रख दिया ताकि कोई उसे घर से चोरी ना कर सके| फिर बिना देर किये, उस नंबर पर कॉल किया जिस से मेसेज आया था लेकिन वो नंबर मौजूद नहीं था। उसके बाद पार्थ और भी ज़्यादा सोच में पड़ा गया| उसके लिए ये जानना बहुत जरुरी था कि उसे मेसेज  किसने किया| वो दिमाग चलाने लगा कि कैसे मेसेज करने वाले का पता लगाया जाए। उसे एक आदमी की याद आई जो साइबर सेल में काम करता था| सर्वे के दौरान, पार्थ को कई बार पुराने सिमकार्ड और मोबाइल फ़ोन मिलते थे| पार्थ उन सभी को साइबर सेल वालों को दे देता था। इसी सिलसिले में उसकी मुलाकात अनिल नाम के एक ऑफिसर से हुई थी। हालाँकि अनिल थोड़ा खडूस किस्म का आदमी था, लेकिन पार्थ बिना कुछ सोचे उसके ऑफिस पहुँच गया जहां की सारे ऑफिसर्स बैठे अपना काम कर रहे थे| पार्थ ने अनिल को पहले ही अपने आने के बारे में इन्फॉर्म कर दिया था। उसको देखकर अनिल ने कहा “आओ आओ, आर्कियोलॉजिस्ट। तुम्हारा काम भी ऐसा है कि मैं ठीक से बोल भी नहीं पा रहा हूँ| बताओ, आज मुझे कैसे याद किया? फिर से पुराने मोबाईल मिले हैं क्या? यार तुम एक कबाड़ की दुकान क्यों नहीं खोल लेते?”

पार्थ – हाहाहा..  वैरी फनी सर, लेकिन इस बार मुझे एक नंबर के बारे में डिटेल्स निकलवानी है| उस नंबर से मुझे फ़ोन आया था लेकिन जब मैंने दोबारा फ़ोन किया तो बंद बता रहा है। आप बता सकते हैं ये नंबर किस के नाम पर रजिस्टर्ड है?

पार्थ ने अनिल से झूठ बोला था, क्योंकि वो अनिल को सच नहीं बता सकता। अनिल, पार्थ को गौर से देखने लगा। किसी नंबर की डिटेल्स पता करने का काम पुलिस का होता है। अनिल को मामलकुछ अटपटा लगा।  उसने पार्थ से पूछा  “तुम्हें क्या ज़रूरत  पड़ गयी डिटेल्स निकलवाने की? किसी ने मिस्ड कॉल किया होगा। किसी मुजरिम का तो नंबर नहीं है न? कहीं तुम किसी लफड़े में तो नहीं फंस गए हो?”

पार्थ जानता था कि अनिल उससे इसी तरह के टेढ़े-मेढ़े सवाल करेगा, लेकिन वो बिल्कुल तैयार होकर आया था| 

पार्थ – नहीं सर, मैं कहाँ जुर्म करूँगा? ये पिछले कुछ दिनों से बार-बार कॉल कर के परेशान कर रहा है| जब मैं कॉल करता हूँ तो बंद बताता है। सोचा एक बार चेक करवा लूँ कि कौन है जो परेशान कर रहा है|

अनिल ने कहाठीक है, मुझे नंबर दे दो| मैं रात तक चेक कर के बताता हूँ| अगर कुछ छुपा रहे हो तो अभी बता देना वरना आगे जाकर बहुत प्रॉब्लम होगी। 

अनिल ने पार्थ से नंबर लिया और अपने काम में लग गया| पार्थ फ़ौरन ऑफिस से बाहर आ गया| अनिल का बर्ताव ही था सब पर शक करना| जब भी पार्थ काम के सिलसिले में उस से मिलता, वो तब भी उस पर शक ही करता था। कुछ देर बाद पार्थ वापस अपने घर आ गया और सबसे पहले उसने चेक किया की डायरी तिजोरी में है या नहीं। डायरी वहीं रखी थी| पार्थ ने डायरी बाहर निकाली और माधव शब्द पर अपनी उँगलियाँ फेरने लगा| उसके मन में बुरी तरह से डर बसा हुआ था कि कोई डायरी को चुरा न ले|

पार्थ ने डायरी का पहला पन्ना खोला तो एक बार फिर से उसमें कृष्ण का मेसेज  उभरने लगा।      

हे पार्थ, इस संसार में हर कोई अकेलेपन से परेशान है| कोई अपने परिवार का साथ चाहता है, तो कोई मित्र का, तो कोई अपने प्रेमी का| क्या तुम जानते हो कि जीवन में अकेलापन का होना, अच्छी बात होती है? मुझे पता है मेरी ये बात पढ़ कर तुम सोच रहे होगे कि मैं यह कैसी बातें कर रहा हूँ किन्तु यही सत्य है पार्थ| अकेलापन ये दर्शाता है कि हम अपने लिए जीना ही भूल गए हैं| हमारे जीवन का उद्देश दूसरों के अन्धकार से भरे जीवन में रोशनी फैलाना है। परंतु मेरी एक बात हमेशा याद रखना, हमें अपने लिए भी जीना भूलना नहीं चाहिए| जब भी अकेलेपन का अनुभव हो तब कुछ ना कुछ नया सीखते रहो।  इस से अकेलापन दूर हो जायेगा और जीवन की किताब में नई सीख भी जुड़ जाएगी| राधे-राधे|”

डायरी पढ़ने के बाद पार्थ हमेशा की तरह हैरान था| उसने अपने अकेलेपन की प्रॉब्लम के बारे में आज से पहले किसी को भी नहीं बताया था, फिर भी उसका जवाब डायरी में मिल गया| पार्थ का भरोसा डायरी पर पूरी तरह से बन चुका था| उसके चेहरे पर एक हल्की-सी मुस्कान थी| वो खुद को बहुत लकी मान रहा था कि उसे कृष्ण की डायरी मिली थी| पार्थ, डायरी को फिर से तिजोरी में रख ही रहा था कि तभी उसका फ़ोन बजने लगा। अनिल का कॉल था। 

पार्थ को लगा कि शायद अनिल को नंबर के बारे में सारी इनफार्मेशन मिल गयी होगी| 

पार्थ – हेलो सर, नंबर की डिटेल्स मिल गयी क्या?

अनिल ने जवाब में कहा “क्या रे, तुझे क्या लगता है मैं फ़्री बैठा हूँ? रोज़ 15-15 घंटे काम करता हूँ|”

अनिल चिल्लाते हुए बोला| पार्थ को समझ नहीं आया कि अनिल इतने गुस्से में क्यों है? उसने हिचकिचाते हुए पूछा,

पार्थ – क्या हुआ सर? आप गुस्से में क्यों हैं?

अनिल ने कहा तुमने जो नंबर दिया था वो नंबर कोई यूज़ नहीं करता और आज से पहले ये नंबर किसी ने भी यूज़ नहीं किया| एक तो गलत नंबर देते हो और फिर पूछते हो कि मैं गुस्से में क्यों हूँ।  ख़बरदार आज के बाद जो मेरा टाइम वेस्ट किया तो, फ़ोन रखो अभी|”

अनिल ने पार्थ को डांट कर कॉल कट कर दिया| पार्थ को ये जानकर झटका लगा कि ऐसा कैसे हो सकता है? जिस नंबर से मेसेज आया था, वो नंबर आज तक किसी ने यूज़ ही नहीं किया! 

पार्थ के मन में फिर एक बार सवाल पैदा हो रहे थे कि आखिर ये हो क्या रहा है उसके साथ? 

आखिर कौन था जिसने पार्थ को मेसेज किया था? 

क्या पार्थ की जान को खतरे में डाल देगी, ये जादुई डायरी? 

आगे क्या होगा, जानेंगे अगले चैप्टर में!

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