‘सारी सारी रात सोए ना हम’ ये वाक्य कोई इश्क़, मुश्क वाली कंडीशन, मोहब्बत या प्रेम प्रसंग में कहें, तो कितना रोमान्टिक लगता है, है न? इमैजिन कीजिए, यही वाक्य बागान बाड़ी के बिस्तर पर लेटी नीना के गले में अटका हुआ था। सारी सारी रात वो सो नहीं पा रही थी। वजह थी, आँखें बंद करते ही अजीबो गरीब सपनों का आना और उसका परेशान हो जाना।
वो सोच रही थी, ‘क्या ये सपने कम थे जो सत्यजीत की नाराज़गी का भी उसे सामना करना पड़ा।’ वो इतना नाराज़ क्यों हुए? वो भी इस बात पर कि पोर्ट्रेट आगे नहीं बढ़ पा रहा। कोई उन्हें समझाए कि ये आर्टिस्ट्री का काम है, जैसे-तैसे ब्रश मारके पोर्ट्रेट नहीं बनता। कभी कभी वक़्त भी लग जाता है, लेकिन यहाँ माजरा कुछ और था। यहाँ वक़्त नीना नहीं लगा रही थी, वो तो आगे बढ़ ही नहीं पा रही थी। उन्होंने सीधा मुँह पर आकर काम को जल्दी करने की चेतावनी दे डाली।
वह आगे सोचने लगी कि क्या सत्यजीत सच में उसे वसुंधरा की पूरी कहानी बता रहे हैं, या फिर कुछ तो ऐसा है, जो वो उससे छिपा रहे हैं।
उसके मन में कई सवाल कौंध रहे थे। वह बार-बार अपनी आँखें बंद करने की कोशिश करती, लेकिन हर बार उसके सपनों में अंधेरा और हलचल दिखाई देती। ये ख्याल उसे बेचैन कर रहे थे कि क्या उसकी धीमी गति और अधूरे पोर्ट्रेट का मतलब कुछ गहरा है?
वो बिस्तर पर पलटी खाते-खाते थक चुकी थी। इस तरह वो पड़ी रही तो उसकी रीढ़ की हड्डी पक्का टेढ़ी-मेढ़ी हो जाएगी, सोचते हुए वह खड़ी हुई, स्ट्रेच किया और स्टूडियो में चली गई। दरवाजा खोलते ही उसकी नज़र पेंटिंग पर आकर टिक गई, मानो वह पेंटिंग पूछ रही हो, 'आज आने में वक्त लगा दिया।' नीना ने पेंटिंग की तरफ़ देखा—बाल, माथा, एक कान और आँख मिलाकर थोड़ी बहुत ही बनी थी। जितने वक्त से वह इस पर काम कर रही थी, उतने वक्त में तो एक पूरा पोर्टेट तैयार हो जाना चाहिए था।
यह पोर्ट्रेट बनाना कोई बड़ी बात नहीं थी, लेकिन इसका आगे न बढ़ पाना बहुत बड़ी बात थी।
वसुंधरा की आत्मा मानो उस आँख के ज़रिये उससे बात करना चाहती हो।
उसने बंगाल के काले जादू से जुड़ी कई कहानियाँ सुनी थीं, लेकिन कभी उन्हें सच मानकर उन पर यकीन नहीं किया था।लेकिन इतने दिनों में हर उस चीज़ पर यकीन हो रहा है, जो आँखों के सामने है भी नहीं।
नीना ने उसे देखा और बुदबुदाई, “क्या तुम सच में जीवित हो?”
इतना कहते ही एक ठंडी हवा के झोंके से उसके शरीर में सिहरन दौड़ गई। उसने आस-पास देखा, “क्या आपकी आत्मा अभी भी यहाँ मौजूद है?”
इतना कहते ही एक और झोंका उससे टकरा गया।
वसुंधरा के बारे में और जानने का एकमात्र ज़रिया सत्यजीत थे। नीना ने अपने मन में दृढ़ निश्चय किया कि चाहे कुछ भी हो जाए, वह सत्यजीत का सामना करेगी। उसे वसुंधरा के बारे में और जानने की आवश्यकता है—उसकी लाइफ, उसकी डेथ, और इस पेंटिंग बनवाने के पीछे की सच्चाई। क्या वसुंधरा की पेंटिंग का अधूरा रहना किसी गहरे राज़ का संकेत है? क्या उसके साथ कुछ ऐसा हुआ, जो उसे मौत की ओर ले गया?
वो सत्यजीत के लौटने का इंतजार करने लगी। अब उसे उनका रूटीन पता था। वह जानती थी कि लाइब्रेरी के समय वे अकेले होते हैं, और तभी उनसे सब कुछ पूछा जा सकता है।
रात के वक़्त वह उन्हें खोजते हुए लाइब्रेरी पहुँच गई।
नीना: "मिस्टर चौधरी, मुझे वसुंधरा जी के बारे में और भी कुछ जानना है।"
सत्यजीत: "अब और क्या जानना चाहतीं हैं?"
नीना: "क्या आप मुझे वसुंधरा जी के अंतिम महीनों के बारे में और बता सकते हैं?"
नीना ने सावधानी से पूछा, उसकी आवाज़ में उत्सुकता झलक रही थी।
सत्यजीत ने एक गहरी साँस ली, मानो उन्हें कोई भारी बोझ उठाना हो।
सत्यजीत: “वह समय मेरे और उसके दोनों के लिए बहुत कठिन था। वसुंधरा खुद परेशान थी, उसका व्यवहार अचानक से अजीब हो गया था। वह अक्सर कमरे में बंद रहने लगी, किसी से मिलती नहीं थी। दोस्तों और परिवार के लोगों ने कितनी कोशिश की, लेकिन वह उनसे नहीं मिली। मैं उसे अपनी तरफ़ से समझाने की कोशिश करता, उसे बाहर ले जाने की ज़िद करता, लेकिन वह किसी की बात सुनने को तैयार नहीं थी।”
नीना और सत्यजीत के बीच बातचीत धीरे-धीरे गहराने लगी। नीना ने सत्यजीत को ध्यान से देखा, उनकी आँखों में एक अनकही कहानी छिपी हुई थी। बिज़नेसमेन अक्सर काफी अच्छे से झूठ बोल लेते हैं। अब उसे सतही नहीं, पूरी जानकारी चाहिए थी। नीना ने ध्यान से सुनना शुरू किया, उसकी दिलचस्पी बढ़ती जा रही थी।
नीना: “मैंने उन्हें सपने में किसी से लड़ते हुए देखा, क्या ऐसा कभी हुआ था?”
सत्यजीत ने एक पल के लिए चुप्पी साध ली, फिर बोला,
सत्यजीत: “हां, लेकिन मैं यह नहीं समझ पा रहा था कि वह किससे लड़ रही थी और क्यों... क्योंकि वह ऐसी नहीं थी। एक दिन तो हद हो गई, उसने अपनी कई पेंटिंग्स को डिस्ट्रॉय कर दिया। वह लगातार चीख रही थी कि ये सब श्रापित हैं, कि उनमें आत्माएँ भरी हुई हैं। 'ये पेंटिंग्स मुझे मार देंगी! पर आपने यह सपना कैसे देखा?”
नीना ने ये सवाल अनसुनी करते हुए पूछा: “फिर क्या हुआ?”
सत्यजीत अब दर्दभरे आवाज़ में बोला : “उस दिन वह बहुत बुरी तरह टूट गई थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या किया जाए। मैंने उसे समझाने की कोशिश की, लेकिन वह पूरी तरह से डरी हुई थी। वह हर चीज़ से डर रही थी। उस वक़्त वह मेरी बात सुनने को तैयार नहीं थी। एक-एक करके उसने सभी पेंटिंग्स आग के हवाले कर दी। मैं उस वक्त उनमें से किसी पेंटिंग को नहीं बचा पाया।”
नीना ने सत्यजीत की आँखों में देखा, जहाँ एक अंधेरा छाया हुआ था। उसे लगा कि वहाँ कोई गहरा राज़ छिपा हुआ है। “और फिर?” उसने पूछा, उसकी दिलचस्पी और बढ़ गई थी।
सत्यजीत: “फिर वह अचानक ही बीमार पड़ गई। उसे अपने आस-पास लोग दिखाई देने लगे। वह किसी से भी बातें करती, कभी हँसती तो कभी जोरों से रोने लगती। उसके घरवाले उससे मिलने आते थे। उन्हें भी लगता था कि कोई साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम है लेकिन मुझे लगता है कि कुछ तो ऐसा था जो उसे भीतर से खा रहा था,” सत्यजीत ने कहा, उसकी आवाज में हताशा थी।
नीना ने एक गहरी साँस ली। उसके मन में और भी सवाल उबाल रहे थे। क्या यह सब कुछ सिर्फ़ मानसिक समस्या का परिणाम था, या फिर वसुंधरा वास्तव में किसी अनजानी ताकत से जूझ रही थी? क्या कोई साया वसुंधरा जी को भी दिखाई देता था?
इस बातचीत ने नीना के मन में और भी जिज्ञासा पैदा कर दी।
नीना: "वसुंधरा जी का सार्वजनिक जीवन इतना सुंदर था। वह सबकी मदद करती थीं, कला की प्रशंसक थीं, अचानक इतनी बदल कैसे गई?"
सत्यजीत: "यह सब धीरे-धीरे हुआ। उसके जीवन में एक समय ऐसा था जब वह खुश थी, उसकी पेंटिंग में उसके इमोशन्स दिखते थे।लेकिन किसी चीज़ ने उसे बदल दिया।
कहते वो सोचने लगे। फिर आगे बोले
"अगर आपके सवाल पूरे हो गए हों तो मैं चलता हूँ? आई हैव वर्क टू कैच-अप ऑन”
नीना: "जी... गुड नाइट..."
सत्यजीत: "गुड नाइट"
नीना गेस्ट रूम की तरफ़ जा ही रही थी कि उसे बागान बाड़ी के ऊपर से गेट के पास वसुंधरा कहीं जाती दिखाई दी। नीना को लगा कि वह नीचे जाएगी, तब तक वह बाहर चली जाएगी। हवेली का दरवाजा तो मिस्टर चौधरी के आते ही बंद हो जाता है और वह कोई आत्मा नहीं है, वह इस गेट को पार करके बाहर नहीं जा पाएगी। लेकिन फिर भी, उसने हिम्मत करके आगे बढ़ती है और देखती है कि वसुंधरा वही रुककर उसका इंतज़ार कर रही थी। वह उसकी तरफ़ मुस्कुरा रही थी। नीना के चेहरे पर भी मुस्कान बिखर गई। वह बोली, "मुझे आपसे बात करनी है।"
वसुंधरा ने उसे अपने होंठों पर उंगली रखकर चुप रहने का इशारा किया और सामने दीवार पर परछाई की तरफ़ देखने को कहा। उसने देखा, परछाई में वसुंधरा के पीछे कोई आया। वह आदमी था या औरत, यह उसे परछाई से पता नहीं चल रहा था। उसके हाथ में बड़ा सा छुरा था।
वह चिल्लाई, “हटिए! वह आपको मार देंगे!”
जब वह असलियत में वसुंधरा की तरफ़ देखती, तो उनके पीछे कोई नहीं था। उसे यह मंजर सिर्फ़ दीवार पर वसुंधरा की परछाई में ही दिख रहा था और देखते ही देखते, उस पीछे वाले शख्स ने वसुंधरा को छुरा घोंप दिया। नीना की चीखें बागान बाड़ी में गूंज उठी।
पूरे बागान बाड़ी की लाइट्स ऑन हो गईं। शंभू और बाकी स्टाफ नीना की तरफ़ दौड़ पड़े। सत्यजीत भी कमरे से निकलकर बाहर आए।
शंभू ने उसे देखकर घबराते हुए पूछा, “की होयेछे?", क्या हुआ?
नीना घबराई सी, फटी आँखों से सबको देख रही थी, और सभी उसे म्यूज़ियम में रखे पुतले की तरह आस-पास से घेरकर खड़े थे।
सत्यजीत वहाँ पहुंचे, "नीना, आप ठीक तो हैं? क्या हुआ? आप इतनी ज़ोर से चीखीं कौन? व्हॉट आर यू डूइंग हियर? आपको तो अपने कमरे में होना चाहिए था।"
अगर वसुंधरा की मौत मानसिक स्वास्थ्य का परिणाम था, तो जो उसे अभी-अभी वसुंधरा ने दिखाया वो क्या था?
नीना के मन में ये संदेह गहराने लगे कि क्या सत्यजीत उसे पूरी सच्चाई बता रहे हैं या उन्होंने कुछ छिपा रखा था? क्या वसुंधरा की मृत्यु सिर्फ़ एक दुर्घटना थी, या फिर उसके पीछे एक गहरी साजिश थी?
वह सत्यजीत से पूछ बैठी, “आपने मुझे वसुंधरा जी की मौत के बारे में जो बताया, वह सच था या झूठ?”
सत्यजीत थोड़ा चौंके, और इर्रिटेट भी हुए : “मैं आपसे झूठ क्यों कहूँगा?”
नीना: “ये तो आपको पता होगा… ”
इतना सुनते ही उनका चेहरा सफेद पड़ गया, वे विचलित नज़र आए। वह सत्यजीत से सवाल कर ही रही थी कि तभी स्टूडियो से एक जोरदार आवाज़ गूंज उठी।। सभी इस आवाज़ को सुन सकते थे।
शंभू दोबारा घबराया और बोला, “अरे बाबा, की होयेछे?”
सभी स्टूडियो की तरफ़ दौड़े। नीना का दिल तेजी से धड़कने लगा। कहीं उसकी पेंटिंग्स को कोई नुकसान न हुआ हो। उसकी आँखों में डर साफ-साफ देखा जा सकता था।
जैसे ही नीना स्टूडियो में प्रवेश की, तो उसे देखते ही धक्का लगा। उसका ईज़ल जमीन पर गिरा हुआ था, और पेंटिंग ज़मीन पर मुँह के बल पड़ी हुई थी।
सत्यजीत कमरे के दरवाजे पर खड़े थे, उसके पीछे सभी लोग थे। सत्यजीत की आँखों में एक अलग ही डर था। वह कुछ बोलना चाहता था, लेकिन शब्द उसके गले में अटक गए।
नीना घबरा गई और डरते हुए पेंटिंग को उठाने के लिए झुकी, और उसने उसे उठाते हुए देखा कि वसुंधरा की आँख सही सलामत है और उसने अभी-अभी उन्हें झपकाया है। ये डर कि पेंटिंग को कुछ हो न गया हो, नीना के शरीर में सिहरन पैदा कर रहा था।
उसने देखा अब वसुंधरा की आँख से खून निकल रहा था। स्टूडियो एक अजीबोगरीब तनाव से भरा हुआ था, जैसे कोई शक्तिशाली ऊर्जा पेंटिंग से बाहर निकलने के लिए तैयार हो रही हो। तेज आती उल्लुओं की आवाज़ से लग रहा था मानो कुछ अनहोनी होने वाली हो। नीना का दिल और तेज़ धड़कने लगा, और उसकी साँसें भारी हो गईं।
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