सुहानी की साँसें अब तेज़ चलने लगी थीं। उसका सब्र जवाब दे चुका था, उसकी आवाज़ पहले से कहीं ज़्यादा ठोस, तीखी और आत्म-विश्वास से भरी हुई थी—“उस वसीयतनामे के अनुसार, हम दोनों को ये रिश्ता निभाना है। और जब तक वो वसीयत मौजूद है, कोई भी मुझे आरव की ज़िंदगी से बाहर नहीं कर सकता!”

उसने टेबल पर अपनी उँगली से ज़ोर देकर कहा, जैसे अपने अधिकार की मुहर लगा रही हो। उस की बातों में अब डर या टूटना नहीं थी, बल्कि चुनौती थी—पूरे राठौर परिवार के लिए।

आरव की आँखों में अब गुस्सा साफ़ दिखाई देने लगा था। उसने कुर्सी के हैंडल को कसकर पकड़ते हुए, गहरी सांस ली और फिर पूरे संयम के साथ कहा—“तुम्हें क्या लगता है, सुहानी? कितना वक़्त लगेगा ये साबित करने में कि तुम्हारे फ्रॉड पिता की बाकी चालों की तरह, ये वसीयत भी एक जाल है? एक धोखा है।”

उसने आगे झुक कर उसकी आँखों में सीधे देखते हुए कहा—“मुझे तुम्हारे साथ एक पल भी नहीं रहना। ज़बरदस्ती इस रिश्ते को खींचने का कोई मतलब नहीं है। और जितनी जल्दी तुम ये बात समझ जाओ, उतना अच्छा होगा… तुम्हारे लिए।”

इन शब्दों ने सुहानी के दिल को फिर से चीर दिया, लेकिन इस बार वो दर्द उसे कमजोर नहीं बना रहा था—बल्कि मज़बूत कर रहा था। कमरे में मौजूद हर चेहरा किसी न किसी तनाव से गुज़र रहा था। तभी सबकी नज़र मीरा पर गई—जो अब तक चुप थी, जैसे उसके होंठ सिल दिए गए हों। वो सिर झुकाए बैठी थी, जैसे उसकी मौजूदगी खुद उसके लिए बोझ बन चुकी हो।

“मीरा, बेटा… क्या तुम खुश नहीं हो इस खबर से?” मीरा के पिता ने धीरे से उसके कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा। उनकी आवाज़ में आशंका थी, और आँखों में चिंता। मीरा ने कुछ नहीं कहा। बस हल्के से सिर हिलाया, लेकिन वो 'हाँ' भी किसी मजबूरी से ज़्यादा नहीं लगी।

रणवीर की नज़रें तुरंत उसकी ओर चली गईं। उसके माथे पर बल आ गया। उसने देखा—मीरा की उंगलियाँ बार-बार कांप रही थीं, और होंठों पर मुस्कान का कोई नामोनिशान नहीं था। उसके चेहरे का रंग फीका पड़ चुका था—जैसे किसी ने सुबह-सुबह उसका सपना छीन लिया हो।

रणवीर ने गहरी नज़रों से मीरा को पढ़ने की कोशिश की… और उसके चेहरे पर जो देखा, वो सिर्फ एक बात कह रही थी—“मीरा कुछ तो छुपा रही है।”

रणवीर की पैनी निगाहें मीरा के चेहरे का कोना-कोना पढ़ रही थीं। वो यूँ ही बात नहीं कर रहा था—उसके सवाल में सिर्फ तंज नहीं था, एक चेतावनी भी छुपी थी।

“मैं भी तब से यही गौर कर रहा था… तुम्हारे चेहरे पर तो जैसे बारह बजे हुए हैं। तुम खुश नहीं दिख रही, मीरा।”

उसके लहजे में गंभीरता थी, और नज़रें सवालों से भरी हुईं थीं। मीरा चौंकी नहीं, क्योंकि वो इस बात की उम्मीद कर रही थी। रणवीर वही इंसान था, जिसने हमेशा उसे शक की नज़र से देखा था, लेकिन वो ये भी जानती थी—रणवीर के सवालों से बचना आसान नहीं है।

वो चुपचाप कुछ पल टेबल पर रखी कॉफी के कप को देखती रही, जैसे शब्दों की तलाश कर रही हो। उसे याद आया, वो दिन… जब सुहानी और आरव ने मिल कर प्रणव को उस तैखाने से बाहर निकाला था। रणवीर की वो संदेह भरी निगाहें, मीरा ने पहली बार उसी दिन महसूस कर ली थीं। तब से वह सतर्क हो गई थी, हर बात पर, हर नजर पर। मगर आज, इस शादी के ऐलान ने जैसे उसकी आत्मा को झिंझोड़ कर रख दिया था। वो जानती थी—अगर आज भी वो चुप रही, तो यह चुप्पी धीरे-धीरे उसे कहीं और गहराई में गिरा देगी। लेकिन… फिर भी, उसने वही किया, जो वो हमेशा करती आई थी।

“नहीं रणवीर चाचू,” उसने धीरे से मुस्कुराते हुए कहा, “मैं बहुत खुश हूँ। मुझे बस…भरोसा नहीं था कि ये दिन कभी आएगा भी, आज भी विश्वास नहीं हो रहा।”

उसकी मुस्कान हल्की थी—बिलकुल वैसी, जैसी कोई बच्चा किसी सज़ा के डर से बना लेता है। चेहरे पर शिकन अभी भी थी, आँखें चमकने की जगह बुझी हुई सी लग रही थीं। रणवीर ने नज़रों से उसे टटोला, मगर मीरा की दीवारें अब बहुत ऊँची हो चुकी थीं। आज वो उसे पढ़ नहीं पाया—और यही बात उसे अंदर तक हिला गई।

आरव, जो मीरा की तरफ देख रहा था, उसकी आवाज़ और मुस्कान में छिपा डर नहीं पहचान सका। उसे तो सिर्फ इतना दिखा कि मीरा कह रही है—"वो खुश है।" आरव का दिल… उसकी आवाज़ सुनकर थोड़ी देर को पिघल गया। बिना कुछ कहे, उसने मीरा का हाथ और कसकर पकड़ लिया—जैसे उसे यकीन दिला रहा हो कि वो उसके साथ है। और मीरा…मीरा बस चुप रही। वो उँगलियाँ आरव की पकड़ में ठिठकी रहीं थी, मगर दिल… कहीं और सिसकता रहा।

“I’m so sorry, baby… मेरी वजह से तुम्हें इतने दिनों तक ये सब झेलना पड़ा। मगर अब और नहीं…अब मैं ये नाटक और वक़्त तक नहीं चलने दूंगा।”

आरव की ये बात मीरा के लिए थी, मगर उसका लहजा ऐसा था, जैसे खुद से कोई कसम खा रहा हो—अपने गुस्से, अपनी बेचैनी और अपने झूठे रिश्तों से छुटकारा पाने की। सुहानी चुप चाप अपनी कुर्सी से उठी। उसकी थाली वैसे की वैसे ही थी—छुई भी नहीं गई थी। उसने बिना कुछ कहे अपना पर्स उठाया, गाड़ी की चाभी ली और दरवाज़े की तरफ बढ़ने लगी।

“रुको! कहाँ जा रही हो?” आरव की आवाज़ में रुकावट कम, अधिकार ज़्यादा था।

सुहानी ने कुछ पल रुक कर गहरी सांस ली, फिर धीरे से पलटी। उसकी आंखों में अब आंसू नहीं थे, सिर्फ ठंडी नज़रों की एक दीवार थी। “अब जब तक ये सब ‘नाटक’ चल रहा है,” उसने ‘नाटक’ शब्द पर खास ज़ोर देते हुए कहा, “ऑफिस तो जा सकती हूँ मैं। है ना? वैसे भी मेरा यहाँ अब कोई काम नहीं है।”

उसके शब्दों में ताना था, चोट थी, मगर उसके चेहरे पर शांति थी—एक थकी हुई, टूटी हुई, मगर मजबूत होती औरत की शांति। वो पलटी और फिर से दरवाज़े की ओर बढ़ने लगी।

“ठीक है, तो फिर ऑफिस में मिलते हैं। आज मेरा भी पहला दिन है।” आरव ने उसकी पीठ को देखते हुए आवाज़ ऊँची कर दी, “तुम शायद भूल गयी हो कि हम दोनों बराबर के हिस्सेदार हैं उस कंपनी में।”

सुहानी के कदम थम गए। उसने धीरे से पलट कर आरव को देखा—उसकी नज़रें चिंता से भरी थीं, लेकिन आवाज़ में अब भी संयम और सम्मान था।

“आरव, आपकी तबीयत अभी-अभी सुधरी है। डॉक्टर ने आपको ज़्यादा तनाव और एक्सपोज़र से दूर रहने को कहा है। ये बात शायद आप भूल रहे हैं।” उस की बातों में सच्ची चिंता थी, मगर आरव के कानों तक वो बस एक बहाना बन कर पहुंची।

“तुम्हें मेरी तबीयत की इतनी चिंता अचानक क्यों होने लगी, सुहानी?” आरव की आवाज़ में झूल्लाहत थी।

“मैं जानता हूँ तुम्हें मुझसे क्या चाहिए—और वो सिर्फ ये वसीयतनामे में लिखी हुई प्रॉपर्टी है, और उससे जुड़ी वो कुर्सी जो मेरे ताऊ जी के नाम थी।” उसने अपनी जगह से उठते हुए ठंडी नज़र से उसे देखा। “मैं अपना ख्याल खुद रख सकता हूँ। और वैसे भी, आज रणवीर चाचू मेरे साथ आ रहे हैं।”

इतना कहते हुए उसने रणवीर की ओर देखा, “चलें चाचू? अगर आपका नाश्ता हो गया हो तो?”

रणवीर, जो अब तक चुप बैठा था, एक क्षण के लिए सुहानी की ओर देखता रहा—जैसे उसकी चुप्पी पढ़ने की कोशिश कर रहा हो। फिर उसने एक गहरी सांस ली और बोला, “बिलकुल, मैं तैयार हूँ…चलो।”

वो दोनों बाहर निकलने लगे, और उनके पीछे सिर्फ दो चीज़ें बची थीं—सुहानी की टूटती हुई सांसें, और खाने की टेबल पर फैली एक अजीब सी ख़ामोशी। मीरा अब भी चुप बैठी थी, जैसे किसी तूफान के गुजरने का इंतज़ार कर रही हो। और दिग्विजय की आंखें… जैसे अब अपना अगला वार सोच रही हों।

“रणवीर, मुझे भी आपसे कुछ काम था, तो मैं भी ऑफिस चल रहा हूँ आप लोगों के साथ।”

विक्रम ने मुस्कुरा कर कहा, और जैसे ही रणवीर ने सहमति में सिर हिलाया, वो थोड़ा झुक कर उसके कानों में धीमे से कुछ कहने लगा। रणवीर ने उस बात पर हल्की सी मुस्कान दी, फिर अचानक सुहानी की ओर देखा और तंज़ भरे लहजे में बोला, “हाँ, क्यों नहीं? सुहानी को अपने बचपन के दोस्त को लिफ्ट देने में कोई परेशानी तो नहीं होनी चाहिए, है न?”

उसकी आवाज़ में नमी भी थी और चुभन भी। सुहानी एक पल के लिए रुकी—वो जानती थी, ये वार सीधे उसकी छवि पर किया गया था। उसने पलट कर विक्रम को देखा, मगर वो जानती थी, असली सवाल अब उस पर नहीं, किसी और की नज़र में था।

“तुम सुहानी के क्लासमेट थे?” आरव ने गहराई से विक्रम की ओर देखते हुए पूछा। आवाज़ में स्पष्ट तनाव था, और निगाहों में हल्का-सा खून।

विक्रम ने एकदम सहजता से मुस्कुरा कर कहा, “हाँ, स्कूल के दिनों से जानते हैं एक-दूसरे को और फिर हम कॉलेज में भी साथ थे। ‘बहुत पुरानी’ दोस्ती है हमारी। उसने जानबूझकर "बहुत पुरानी" शब्दों पर ज़ोर दिया।

“बस अब हमारी परिस्थितियाँ कुछ अलग हैं। अब वो जितनी नफ़रत तुम लोगों से करती है, उतनी ही मुझसे भी करती है। तो सुहानी, मुझे लिफ्ट देने में कोई प्रॉब्लम तो नहीं है तुम्हें?”

विक्रम की आवाज़ में तंज भी था और एक छिपी हुई सच्चाई भी। उसकी निगाहें सीधे सुहानी के चेहरे पर थीं। सुहानी ने कुछ पल के लिए उसकी ओर देखा—जैसे उसकी आँखें उसकी बातों के पीछे की मंशा को पढ़ना चाह रही हों।

फिर उसने एक लंबी साँस ली और शांत स्वर में कहा, “तुम्हारे साथ मेरी कोई व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है विक्रम। अगर तुम्हें मेरे साथ चलना है, तो चलो।”

सुहानी ने झुक कर अपनी चाभी उठाई, और एक शांत स्वर में बोली, “आरव, अगर आपके सवाल खत्म हो गए हों, तो क्या हम अब जा सकते हैं?”

आरव के अंदर कुछ खौल उठा। उसने सुहानी की ओर तीखी नज़रों से देखा, फिर विक्रम की ओर मुड़ते हुए बोला, “तुम्हें ज़रूरत से ज़्यादा दिलचस्पी हो रही है सुहानी में? याद रखना  अभी भी वो बीवी है मेरी….भले ही हमारी शादी नकली हो, मगर रिश्ता कानूनी है। तो ज़रा संभल कर।”

रणवीर कुछ कहना चाहता था, मगर रुक गया। वो विक्रम और सुहानी के बीच का यह असहज लेकिन जटिल संबंध देख रहा था।

“आरव, अगर ये सब ड्रामा खत्म हो गया हो, तो क्या हम निकल सकते हैं?”

सुहानी ने सख्ती से कहा, और आगे बढ़ने लगी। आरव की आँखें अब विक्रम और सुहानी के बीच की अदृश्य डोर को तलाश रही थीं, जो उसे हर पल कांट रही थी। रणवीर चुप खड़ा था, लेकिन उसके चेहरे पर एक संजीदा मुस्कान थी—जैसे वह जानता हो, कि ये सिर्फ शुरुआत है। दिग्विजय अब तक टेबल पर बैठे चाय के कप में हल्की चुस्कियाँ ले रहा था, लेकिन उनकी आंखें सब कुछ देख रही थीं। एक नई चाल उनके दिमाग में आकार लेने लगी थी। विक्रम ने रणवीर की ओर एक निगाह डाली, जैसे इशारा कर रहा हो कि “सब प्लान के मुताबिक हो रहा है।”

लेकिन उसके मन में कुछ और चल रहा था—वो जानता था कि रणवीर तो शमशेर को मिटाना चाहता है, मगर उसे खुद अब काजल के बारे में कुछ अहम जानकारी मिली थी, जो वह सुहानी तक पहुँचाना चाहता था। और शायद, सुहानी के ज़रिये शमशेर तक।

सुहानी बिना कुछ जवाब दिए पलटी और तेज़ी से बाहर की ओर बढ़ गई। उसके चेहरे पर भावशून्यता थी, मगर आँखों में तूफ़ान साफ़ झलक रहा था। विक्रम ने एक नज़र रणवीर पर डाली, जैसे कह रहा हो “अब मैं अपना हिस्सा निभा रहा हूँ”, फिर वो भी जल्दी से उसके पीछे चल दिया।

आरव बस खड़ा देखता रह गया। उसकी मुठ्ठियाँ अनजाने में भींच गईं, और साँसें तेज़ चलने लगीं।

“वो हमारे साथ क्यों नहीं जा सकता?” उसने अचानक रणवीर की ओर मुड़कर पूछा। “सुहानी से उसे क्या काम हो सकता है?”

रणवीर ने हल्की सी मुस्कान के साथ उसकी ओर देखा। “काम... या कह लो कोई अधूरी बात। बचपन की दोस्ती में कई राज छिपे होते हैं, आरव।”

उसने जानबूझकर आरव की आँखों में देख कर कहा। आरव ने एक पल के लिए कुछ सोचना चाहा, मगर फिर झल्ला कर खुद से कहा—“मुझे समझ नहीं आ रहा कि मुझे जलन क्यों हो रही है… मुझे तो उस से नफ़रत करनी चाहिए।”

आरव रणवीर के शब्दों को समझने की कोशिश कर ही रहा था कि बाहर से गाड़ी के दरवाज़े बंद होने की आवाज़ आयी। सुहानी और विक्रम निकल चुके थे… साथ में। गाड़ी में बैठते समय उसने धीरे से सुहानी से कहा, “तुम्हारी माँ को लेकर कुछ पता चला है… पर ये बात यहाँ नहीं, रास्ते में बताऊँगा।”

सुहानी का चेहरा सख्त हो गया। उसने तुरंत दरवाज़ा खोला और अंदर बैठ गयी। पीछे खड़े आरव की मुट्ठियाँ अपने आप भींच गईं। रणवीर अब तक सब देख रहा था—और सोच रहा था, “कौन किसका खेल, खेल रहा है… और आखिर में मात किसे मिलेगी।”

 

क्या रणवीर जान चुका है कि विक्रम सुहानी से मिला हुआ है? 

आरव की जलन से क्या लौटेगी उसकी याददाश्त? 

काजल का कौन सा सच बताएगा विक्रम? 

जानने के लिए पढ़ते रहिये, रिश्तों का क़र्ज़।

 

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